Thursday, 18 November 2021

एक ग़ज़ल-वो मीर की ग़ज़ल है

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-वो मीर की ग़ज़ल है


खुशबू किसी के रेशमी बालों से आ रही

वो मीर की ग़ज़ल है रिसालों से आ रही


सुनता कोई अकेले में खुलकर कोई इसे

कैसी सदा-ए-इश्क़ है सालों से आ रही


हम चाँदनी का ख़्वाब सजाते ही रह गए

चादर धुएँ की दिन के उजालों से आ रही


पत्ते-तने हरे थे मगर फल कहीं न थे

चिड़िया उदास आम की डालों से आ रही


जादूगरी,तिलस्म किसी काम का नहीं

मुश्किल तमाशा देखने वालों से आ रही

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


18 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१९-११-२०२१) को
    'प्रेम-प्रवण '(चर्चा अंक-४२५३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हार्दिक आभार आपका अनीता जी ।सादर अभिवादन

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन ज्योति जी

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  3. शानदार/उम्दा प्रस्तुति।

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  4. बेहतरीन रचना शुभकामनाएं

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय।सादर अभिवादन

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  6. यह कोई मामूली ग़ज़ल नहीं कमाल है लफ़्ज़ों का। दाद देते-देते ज़ुबां थक सकती है, दिल नहीं।

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    1. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

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  7. Replies
    1. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

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  8. वाह! बहुत ही खूबसूरत गज़ल

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  9. बेहद सुंदर कृति

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