चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-वो मीर की ग़ज़ल है
खुशबू किसी के रेशमी बालों से आ रही
वो मीर की ग़ज़ल है रिसालों से आ रही
सुनता कोई अकेले में खुलकर कोई इसे
कैसी सदा-ए-इश्क़ है सालों से आ रही
हम चाँदनी का ख़्वाब सजाते ही रह गए
चादर धुएँ की दिन के उजालों से आ रही
पत्ते-तने हरे थे मगर फल कहीं न थे
चिड़िया उदास आम की डालों से आ रही
जादूगरी,तिलस्म किसी काम का नहीं
मुश्किल तमाशा देखने वालों से आ रही
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१९-११-२०२१) को
'प्रेम-प्रवण '(चर्चा अंक-४२५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार आपका अनीता जी ।सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन ज्योति जी
Deleteशानदार/उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteबेहतरीन रचना शुभकामनाएं
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय।सादर अभिवादन
Deleteयह कोई मामूली ग़ज़ल नहीं कमाल है लफ़्ज़ों का। दाद देते-देते ज़ुबां थक सकती है, दिल नहीं।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
Deleteसुंदर भावभरी गजल ।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
Deleteवाह! बहुत ही खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबेहद सुंदर कृति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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