चित्र साभार गूगल
एक प्रेम गीत-
खुशबुओं की शाम कोई
हमें तो
फूल,तितलियों
की याद आती रही ।
वो घर
सजाने में
हर ग़म-खुशी भुलाती रही ।
उसे मिली ही
नहीं खुशबुओं
की शाम कोई,
बदलती
ऋतुएँ भी
देती कहाँ आराम कोई,
हमारी भूख
हमेशा ही
तिलमिलाती रही ।
वो चाँदनी है
मगर
बादलों में घिरती रही,
हरेक
झील,नदी
मछलियों सी तिरती रही,
कोई भी
रस्म हो वो
रस्म को निभाती रही ।
कभी न थकती
न बुझती
है एक जलता दिया,
हुनर इस
सृष्टि ने औरत को
जाने कितना दिया,
सियाह
रातों को
तारों से जगमगाती रही।
वो भक्ति
प्रेम की बलिदान
की कथाओं में है,
तमाम गीत
ग़ज़ल ,मन्त्र
औ ऋचाओं में है।
युगों-युगों से
सुरों को भी
वो सजाती रही ।
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल
हर छंद खूबसूरत,सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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