चित्र -साभार गूगल |
एक प्रेम गीत- फूलों में ,घाटी में कोई बैठा रेगिस्तान में
फूलों में,
घाटी में, कोई
बैठा रेगिस्तान में ।
ढाई अक्षर
प्रेम का
किसने बोला मेरे कान में ।
अलबम में
अनगिन छवियाँ
पर कोई भाती है,
फूल से
उड़कर तितली
मेरे ऑंगन आती है,
कुछ तो
शेर मोहब्बत -
वाले होते हर दीवान में ।
मैसेन्जर को
खोल के कोई
कहता हाय हैलो ,
भींग रहा है
लोनावाला
चुपके से निकलो,
याद अजन्ता
और एलोरा की
आती सुनसान में ।
दैहिक प्यार
क्षणिक है
मन का प्यार अनूठा है,
क्षितिज कहाँ
है इन्द्रधनुष
का किस्सा झूठा है,
परिचित से
दूरी जाने क्यों
मन लगता अनजान में ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteबहुत सुन्दर गीत।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सर
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-4-21) को "काश में सोलह की हो जाती" (चर्चा अंक 4035) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका आदरणीया कामिनी जी
Deleteकोमल भावप्रवण रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत प्यारी रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सर
Deleteदैहिक प्यार
ReplyDeleteक्षणिक है
मन का प्यार अनूठा है,
क्षितिज कहाँ
है इन्द्रधनुष
का किस्सा झूठा है,
परिचित से
दूरी जाने क्यों
मन लगता अनजान में ।..बहुत सुंदर भावों भरी रचना ।
हार्दिक आभार और सादर अभिवादन
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