Sunday, 4 April 2021

एक ग़ज़ल -तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है



चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -
तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है 

तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
ये उड़ते परिंदो के ठिकाने का शजर है 

हाथों में किसी बाघ की तस्वीर लिए है 
यह देख के लगता है कि ये बच्चा निडर है 

ये भौंरा बयाबाँ में किसे ढूँढ रहा है 
जिस राह से आया है वहीं फूलों का घर है 

वो डूब के मर जाता तो छप जाते रिसाले 
बचकर के निकल आया कहाँ कोई ख़बर है 

वंशी हूँ तो होठों से ही रिश्ता रहा अपना 
पर आज गुलाबों की तरह किसका अधर है 

रोते हुए हँस देता है रातों को वो अक्सर 
ये नींद में आते हुए ख़्वाबों का असर है 

परदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर 
अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है 

जयकृष्ण राय तुषार 
 
चित्र साभार गूगल 

14 comments:

  1. हर शेर लाजवाब हैं,सुंदर सारगर्भित गजल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।

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    1. आपका हृदय से आभार ।सादर अभिवादन ।

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीया यशोदा जी आपका हृदय से आभार

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  4. बहुत ही मार्मिक रचना
    कृपया मेरा ब्लॉग भी पढ़े

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  5. हमेशा की तरह महकती और महकाती रचना तुषार जी !लाजवाब शेर जो काव्य रसिकों का सौभाग्य हैं---
    परदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर
    अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है
    वाह!!👌👌👌👌👌👌👌

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    1. आदरणीया रेणु जी आपका हृदय से आभार

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  6. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गजल

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    1. आदरणीय सिन्हा साहब आपका हृदय से आभार

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