चित्र -साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
ये उड़ते परिंदो के ठिकाने का शजर है
हाथों में किसी बाघ की तस्वीर लिए है
यह देख के लगता है कि ये बच्चा निडर है
ये भौंरा बयाबाँ में किसे ढूँढ रहा है
जिस राह से आया है वहीं फूलों का घर है
वो डूब के मर जाता तो छप जाते रिसाले
बचकर के निकल आया कहाँ कोई ख़बर है
वंशी हूँ तो होठों से ही रिश्ता रहा अपना
पर आज गुलाबों की तरह किसका अधर है
रोते हुए हँस देता है रातों को वो अक्सर
ये नींद में आते हुए ख़्वाबों का असर है
परदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर
अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है
जयकृष्ण राय तुषार
हर शेर लाजवाब हैं,सुंदर सारगर्भित गजल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार ।सादर अभिवादन ।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया यशोदा जी आपका हृदय से आभार
Deleteबहुत ही मार्मिक रचना
ReplyDeleteकृपया मेरा ब्लॉग भी पढ़े
हार्दिक आभार आपका
Deleteहमेशा की तरह महकती और महकाती रचना तुषार जी !लाजवाब शेर जो काव्य रसिकों का सौभाग्य हैं---
ReplyDeleteपरदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर
अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है
वाह!!👌👌👌👌👌👌👌
आदरणीया रेणु जी आपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुन्दर् ग़ज़ल।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गजल
ReplyDeleteआदरणीय सिन्हा साहब आपका हृदय से आभार
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