चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-
ग़ज़ल ये गीत ये किस्सा कहानी छोड़ जाऊँगा
तुम्हारा प्यार ये चेहरा नूरानी छोड़ जाऊँगा
अभी फूलों की खुशबू झील में सुर्खाब रखता हूँ
किसी दिन गुलमोहर ये रातरानी छोड़ जाऊँगा
हमारी प्यास इतनी है कि दरिया सूख जाते हैं
किसी दिन राख, मिट्टी, आग- पानी छोड़ जाऊँगा
अभी चिड़ियों की बंदिश सुन रहा हूँ पेड़ के नीचे
कभी हल बैल ये खेती किसानी छोड़ जाऊँगा
सफ़र में आख़िरी ,नेकी ही अपने साथ जाएगी
ये शोहरत और दौलत ख़ानदानी छोड़ जाऊँगा
कभी सुनना हो मुझको तो मेरा दीवान पढ़ लेना
किताबों में मैं फूलों की निशानी छोड़ जाऊँगा
दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना
इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा
मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर
ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह ! बेहतरीन गजल
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीया अनीता जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-04-2021) को ""नवसम्वतसर आपका, करे अमंगल दूर" (चर्चा अंक 4036) पर भी होगी।
ReplyDelete--
मित्रों! चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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भारतीय नववर्ष, बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteमैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर
ReplyDeleteये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा
लाज़वाब!
हार्दिक आभार आपका सर
Deleteकभी सुनना हो मुझको तो मेरा दीवान पढ़ लेना
ReplyDeleteकिताबों में मैं फूलों की निशानी छोड़ जाऊँगा
दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना
इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा
हमारी प्यास इतनी है कि दरिया सूख जाते हैं
किसी दिन राख, मिट्टी, आग- पानी छोड़ जाऊँगा
कविवर जाय कृष्ण राय तुषार जी ने बेहतरीन ग़ज़ल कही है वजनदार हर शैर उम्दा भर्ती का इनके यहां कुछ नहीं मिलता।
veerusa.blogspot.com
आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
Deleteवाह! बहुत ही उम्दा ।
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन।
आपका हृदय से आभार
Deleteदिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना
ReplyDeleteइसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा
मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर
ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा ..खूबसूरत एहसासों को सजोती सुन्दर रचना ।
हार्दिक आभार आपका सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteदिलों की आलमारी...वाह...सुन्दर लेखन सर!
ReplyDeleteचलो उठो, बनो विजयी हार ना मानो तुम
आदरणीय मिश्र जी आपका हृदय से आभार
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ReplyDeleteमैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर
ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा
जब व्यष्टि से परे समष्टि में लीन हो जाए प्रेम तो फिर उसकी सीमा कहाँ.....अद्भुत!
आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
हार्दिक आभार आपका
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