Friday, 9 April 2021

है नरक सा दिन सुहानी शाम फिर से लौट आओ

 

एक गीत-

चित्र साभार गूगल
एक सामयिक गीत

चाँद-तारों से

सजी 

इस झील में चप्पू चलाओ ।

है नरक सा

दिन सुहानी

शाम फिर से लौट आओ ।


बैगनी,पीले

गुलाबी फूल

अधरों को सिले हैं,

महामारी के

हवा में बढ़ रहे

फिर हौसले हैं,

जो हमें

संजीवनी दे

वह मृत्युंजय मन्त्र गाओ ।


हँसो मृगनयनी

कि इस 

वातावरण का मौन टूटे,

देखना

इस बार मंगल

कलश कोई नहीं फूटे,

रेशमी साड़ी

पहनकर

फिर शगुन का घर सजाओ।


काम पर

लौटी नहीं 

ये तितलियाँ कैसी ख़बर है,

बदलकर

बदला न मौसम

हर तरफ़ टेढ़ी नज़र है,

भूख की

चिन्ता किसे

बुझते हुए चूल्हे जलाओ ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


6 comments:

  1. बहुत अच्छी काव्य-रचना है यह आपकी तुषार जी । यही चाहिए इस समय में - असीमित, अविरल आशा । बुरा वक़्त गुज़रे हुए अच्छे वक़्त को पुकारने पर मजबूर कर ही देता है ।

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    1. हार्दिक आभार आपका सर।सादर अभिवादन

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  2. Replies
    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय

      Delete
  3. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय

      Delete

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