Friday, 2 April 2021

एक ग़ज़ल-इस आबोहवा में कोई सुर्खाब नहीं है

 

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल-

इस आबोहवा में कोई सुर्खाब नहीं है ये झील भी सूखी कोई तालाब नहीं है इस आबोहवा में कोई सुर्खाब नहीं है इस बार अँधरे में सफ़र कैसे कटेगा अब साथ में चलता हुआ महताब नहीं है मौसम की महामारी से सब कैद घरों में अब पास-पड़ोसन से भी आदाब नहीं है हर प्यास को दिखता है चमकता हुआ पानी सहरा का तमाशा है ये सैलाब नहीं है अब आँखें हक़ीकत को परखने में लगी हैं अब नींद भी आती है मगर ख़्वाब नहीं है यकृष्ण राय तुषार


2 comments:

  1. मौसम की महामारी से सब कैद घरों में
    अब पास-पड़ोसन से भी आदाब नहीं है
    अब आँखें हक़ीकत को परखने में लगी हैं
    अब नींद भी आती है मगर ख़्वाब नहीं है
    वाह --- वाह रचना तुषार जी👌👌👌👌🙏🙏💐💐

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

गीत नहीं मरता है साथी

  चित्र साभार गूगल एक पुराना गीत - गीत नहीं मरता है साथी  गीत नहीं  मरता है साथी  लोकरंग में रहता है | जैसे कल कल  झरना बहता  वैसे ही यह बहत...