Monday 12 April 2021

एक ग़ज़ल-ग़ज़ल ये गीत ये किस्सा कहानी छोड़ जाऊँगा

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

ग़ज़ल ये गीत ये किस्सा कहानी छोड़ जाऊँगा

तुम्हारा प्यार ये चेहरा नूरानी छोड़ जाऊँगा


अभी फूलों की खुशबू झील में सुर्खाब रखता हूँ

किसी दिन गुलमोहर ये रातरानी छोड़ जाऊँगा


हमारी प्यास इतनी है कि दरिया सूख जाते हैं

किसी दिन राख, मिट्टी, आग- पानी छोड़ जाऊँगा


अभी चिड़ियों की बंदिश सुन रहा हूँ पेड़ के नीचे

कभी हल बैल ये खेती किसानी छोड़ जाऊँगा


सफ़र में आख़िरी ,नेकी ही अपने साथ जाएगी

ये शोहरत और दौलत ख़ानदानी छोड़ जाऊँगा


कभी सुनना हो मुझको तो मेरा दीवान पढ़ लेना 

किताबों में मैं फूलों की निशानी छोड़ जाऊँगा 


दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना 

इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा 


मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर 

ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा 


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


24 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. वाह ! बेहतरीन गजल

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीया अनीता जी

      Delete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-04-2021) को  ""नवसम्वतसर आपका, करे अमंगल दूर"  (चर्चा अंक 4036)  पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    भारतीय नववर्ष, बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  5. मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर

    ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा
    लाज़वाब!

    ReplyDelete
  6. कभी सुनना हो मुझको तो मेरा दीवान पढ़ लेना

    किताबों में मैं फूलों की निशानी छोड़ जाऊँगा



    दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना

    इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा



    हमारी प्यास इतनी है कि दरिया सूख जाते हैं

    किसी दिन राख, मिट्टी, आग- पानी छोड़ जाऊँगा

    कविवर जाय कृष्ण राय तुषार जी ने बेहतरीन ग़ज़ल कही है वजनदार हर शैर उम्दा भर्ती का इनके यहां कुछ नहीं मिलता।

    veerusa.blogspot.com

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

      Delete
  7. वाह! बहुत ही उम्दा ।
    बेहतरीन सृजन।

    ReplyDelete
  8. दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना

    इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा



    मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर

    ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा ..खूबसूरत एहसासों को सजोती सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका सादर अभिवादन

      Delete
  9. बहुत सुंदर सृजन

    ReplyDelete
  10. दिलों की आलमारी...वाह...सुन्दर लेखन सर!

    चलो उठो, बनो विजयी हार ना मानो तुम

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय मिश्र जी आपका हृदय से आभार

      Delete

  11. मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर

    ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा
    जब व्यष्टि से परे समष्टि में लीन हो जाए प्रेम तो फिर उसकी सीमा कहाँ.....अद्भुत!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

      Delete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...