(कृपया बिना अनुमति के इस ब्लॉग में प्रकाशित किसी भी अंश का किसी भी तरह से उपयोग न करें)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक ग़ज़ल -अब तो बाज़ार की मेहंदी लिए बैठा सावन
चित्र साभार गूगल एक ग़ज़ल ग़ुम हुए अपनी ही दुनिया में सँवरने वाले हँसके मिलते हैं कहाँ राह गुजरने वाले घाट गंगा के वही नाव भी केवट भी वह...

-
चित्र -साभार गूगल एक गीत -कहीं देखा गाछ पर गाती अबाबीलें ढूँढता है मन हरापन सूखतीं झीलें | कटे छायादार तरु अब ...
-
तिरंगा कल 15 अगस्त है भारत की आजादी /स्वतंत्रता का स्वर्णिम दिन. करोड़ों भारतीयों के बलिदान के बाद यह आजादी हमें मिली है. हम भाग्यशाली हैँ...
-
यह प्रयाग है यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है यह प्रयाग है यहां धर्म की ध्वजा निकलती है यमुना आकर यहीं बहन गंगा से मिलती है। संगम क...
बहुत सुन्दर धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-05-2016) को "कुछ जगबीती, कुछ आप बीती" (चर्चा अंक-2342) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजय जय
ReplyDelete