पुस्तक समीक्षा -रिश्ते बने रहें [नवगीत संग्रह कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम ]
कोमल गांधार में पगे नवगीत -
सुप्रसिद्ध नवगीत कवि माहेश्वर तिवारी की कलम से -
अपने किसी आत्मीय की रचना धर्मिता पर लिखना एक जोखिम भरा काम है ,इसमें अतिश्लाघा होने का खतरा बराबर बना रहता है |ऐसे क्षणों में तटस्थ भाव से मुल्यांकन एक कसौटी बन जाता है |मेरे सामने कुछ ऐसी ही कसौटी आकर खड़ी हो गयी है 'रिश्ते बने रहें 'की भूमिका के संदर्भ में |यह व्योम की दूसरी काव्य कृति है समकालीन गीत संग्रह के रूप में पहली काव्य कृति 'इस कोलाहल में 'के बाद |कोलाहल से भरे समय में भी रिश्तों को बनाये रखने की आकांक्षा एक रचनात्मक प्रयास ही कहा जायेगा |समय की आपाधापी में रिश्ते छूटते -टूटते जाते हैं ,लेकिन एक सजग संवेदनशील रचनाकार अपनी रचनात्मक तुरपाई का कौशल दिखा सकता है |हिंदी नवगीत ने अपनी आधी सदी से अधिक कालावधि की यात्रा में रिश्तों की तलाश ,जड़ों की तलाश और उन्हें बनाए रखने की कोशिश ही तो की है|
इस दृष्टि से भी रिश्ते बने रहें की रचनाएँ आमजन और कविता के बीच के क्षत -विक्षत पुल की मरम्मत कर उसे आवाजाही के लिए सुगम बनाने की रचनात्मक प्रक्रिया में एक सार्थक पहल है |मुझे विश्वास है कि हिंदी जगत व्योम के पूर्व संग्रह की तरह रिश्ते बने रहें 'की रचनाओं से नए सृजनात्मक सम्बन्ध -सेतु बनाकर भविष्य की रचनाशीलता को सम्बल प्रदान करेगा |
[पुस्तक की भूमिका से कुछ अंश मात्र ]
पुस्तक -रिश्ते बने रहें
कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम
प्रकाशक -गुंजन प्रकाशन मुरादाबाद
मूल्य दो सौ रूपये
कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम |
[पुस्तक की भूमिका से कुछ अंश मात्र ]
पुस्तक -रिश्ते बने रहें
कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम
प्रकाशक -गुंजन प्रकाशन मुरादाबाद
मूल्य दो सौ रूपये
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-05-2016) को "कहाँ गये मन के कोमल भाव" (चर्चा अंक-2355) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार भाई साहब।
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