Sunday, 15 May 2016

पुस्तक समीक्षा -संवत बदले नवगीत संग्रह -कवि गणेश गम्भीर

नवगीत संग्रह -संवत बदले
कवि -गणेश गम्भीर 
पुस्तक परिचय -संवत बदले 

मई की चिलचिलाती धूप में नीम की घनी छांह सरीखा है भाई गणेश गम्भीर का नया नवगीत संग्रह 'संवत बदले 'इसे अंजुमन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है |नवगीतों की फिर से और अधिक मजबूती से वापसी हो रही है |कुछ समय पूर्व लग रहा था की यह समयातीत हो जायेगा लेकिन अपने कंटेंट की दमदारी की वजह से यह जन सामान्य की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है |यह अलग बात है इस विधा को फेसबुकिया कवियों ने जरुर नुकसान पहुँचाया है |इस संग्रह में कुल 64 गीत हैं जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं |पुस्तक का मूल्य थोड़ा अखरने वाला है जिसे दो सौ रखा गया है |भाई गणेश गम्भीर जी को इस संग्रह हेतु बधाई |

एक गीत -नहीं लिखूंगा गीत [इसी संग्रह से ]

विज्ञापन से वाक्य सरीखे 
चपल -चटपटे ,मीठे -तीखे 
नहीं लिखूंगा गीत |

जीवन के अमृत पल का 
अन्वेषण करना है 
समय कथा का 
शब्द -शब्द विश्लेषण करना है 
आगामी युग तक 
उसका पारेषण करना है |

धारा में बहती लाशों- सा 
जो न करे प्रतिरोध न चीखे 
नहीं लिखूंगा गीत |

मन पर अनुभव के निशान हैं 
तन पर स्थितियों के 
हिंसक वार हुआ करते हैं 
जब- तब स्म्रतियों के 
किन्तु विरुद्ध खड़ा होना है 
मुझको विकृतियों के |

जो अनीति का करे समर्थन 
और क्रन्तिकारी सा दीखे 
नहीं लिखूंगा गीत |

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-05-2016) को "बेखबर गाँव और सूखती नदी" (चर्चा अंक-2344) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर गीत है ..
    भाई गणेश गम्भीर के नए नवगीत संग्रह 'संवत बदले' के प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनाएं!
    समीक्षा प्रस्तुति हेतु आपको धन्यवाद!

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  3. यह सुंदर नवगीत है साधुवाद गंभीर।।
    छेद गया है मन मेरा,तेरा कोमल तीर

    ReplyDelete

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