चित्र /पेंटिग्स गूगल से साभार |
एक गीत -माँ भी तो गंगा सी बहती है
रिश्तों का
दंश
रोज सहती है |
माँ भी
तो गंगा -
सी बहती है |
मौसम
से भी
पहले बदली है,
निर्गुण है
सोहर है
कजली है ,
दुविधा में
कभी
नहीं रहती है |
भोलापन
उसकी
कमजोरी है ,
लोककथा
बच्चों की
लोरी है ,
गीता है
माँ !
सच ही कहती है |
सब अपने
ही
उसको छलते हैं ,
थके हुए
पांव
मगर चलते हैं ,
पांव
मगर चलते हैं ,
अपना दुःख
कब
किससे कहती है |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-04-2016) को "नैनीताल के ईर्द-गिर्द भी काफी कुछ है देखने के लिये..." (चर्चा अंक-2306) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया सर जी
ReplyDeleteसही कहा
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