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चित्र -साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
खुशबू ये हरापन तो मोहब्बत के लिए है
मौसम का नज़रिया वही हालात वही है
मायूस सी ख़बरें लिए दिन -रात वही है
बस आग ,धुआँ ,आँधी है जंगल की कहानी
कहने का तरीका नया हर बात वही है
सख़्ती है मगर जुर्म की तादाद नहीं कम
कानून की लाचारी हवालात वही है
हर खेत की तक़दीर है मौसम के हवाले
सूखा भी वही ,बाढ़ भी ,बरसात वही है
मिलने के लिए पहले मिला करते थे हर दिन
बेफिक्र हो जब दिल तो मुलाक़ात वही है
हर मोड़ पे चुपचाप मिले वक़्त था ऐसा
कह दो तो सुना दूँ तुम्हें जज़्बात वही है
फलदार हो शाखें या बबूलों पे नशेमन
चिड़ियों का तराना अभी हज़रात वही है
खुशबू ये हरापन तो मोहब्बत के लिए है
आँधी के लिए फूलों की औकात वही है
कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र -साभार गूगल |