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चित्र साभार गूगल |
एक होली गीत-पिचकारी वाले दिन
राग-रंग पर
बंदिश है
पिचकारी वाले दिन ।
बरसाने
क्या सोच रहा
तैयारी वाले दिन ।
कोरोना
विष पंख
लगाए अभी उड़ानों में,
दो गज दूरी
मंत्र सरीखा
अब भी कानों में,
मन के
राम सिया भूले
फुलवारी वाले दिन ।
इन्द्र धनुष
हम देख
न पाए गोरे गालों के,
रंग रह
गए सादा
रेशम की रूमालों के,
टेसू और
गुलालों के
लाचारी वाले दिन ।
खुशबू नहीं
हवा में
कैसे खिड़की खोलेंगे,
संकेतों
में नमस्कार
हम कैसे बोलेंगे,
लौटा दो
मौसम चम्पा की
क्यारी वाले दिन ।
राग
पहाड़ी हो या
होरी काफी वाली हो,
मौसम के
हाथों में
हर ताले की ताली हो,
भाँग
धतूरे के संग
हों पौहारी वाले दिन ।
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |