Friday, 29 May 2020

एक गीत -मेहँदी रचे गुलाबी हाथों ने फिर किया प्रणाम

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -
मेहँदी रचे गुलाबी हाथों ने फिर किया प्रणाम 


पीले कंगन 
नीलम पहने 
सोने जैसी शाम |
मेहँदी रचे 
गुलाबी हाथों 
ने फिर किया प्रणाम |

डोल रहे 
पीपल के पत्ते 
बिना हवाओं के ,
संकोचों में 
चाँद मेघ 
के घेरे बाहों के ,
निर्गुण राही
भटक गया है 
करके चारो धाम |

ब्रह्मकमल 
सी खुशबू 
फैली हुई ओसारे में ,
जाने क्या 
सन्देश 
छिपा है टूटे तारे में ,
स्मृतियाँ  
सिरहाने बैठी 
लगा रहीं हैं बाम |

पंचामृत से 
मन की मूरत 
कौन धो रहा है ,
अपनी ही 
छाया में कोई 
पेड़ सो रहा है |
एक निमन्त्रण 
घर आया है 
जाने किसके नाम |

नींद नहीं 
आँखों में रह -
रह बादल घेर रहे ,
हरे बाँस 
सीटियाँ बजाते 
वंशी  टेर  रहे ,
बौछारों 
की जद में जंगल ,
गाँव, शहर के पाम |


कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अद्भुत!!! सादर नमन!!!

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  3. आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी।
    आपने बहुत सुन्दर गीत रचा है।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार सर सोचा बोझिल समय कुछ रूमान से भर जाय |

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  4. बहुत ही सुन्दर गीत

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  5. सुंदर मनभावन

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  6. बहुत ही सुन्दर नवगीत ... प्राकृति के अनेक रँगों को उकेरती रचना ...

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  7. सिरहाने बैठी लगा रही हैं बाम सुन्दर रचना

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