चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -
मेहँदी रचे गुलाबी हाथों ने फिर किया प्रणाम
पीले कंगन
नीलम पहने
सोने जैसी शाम |
मेहँदी रचे
गुलाबी हाथों
ने फिर किया प्रणाम |
गुलाबी हाथों
ने फिर किया प्रणाम |
डोल रहे
पीपल के पत्ते
बिना हवाओं के ,
संकोचों में
चाँद मेघ
चाँद मेघ
के घेरे बाहों के ,
निर्गुण राही
भटक गया है
भटक गया है
करके चारो धाम |
ब्रह्मकमल
सी खुशबू
फैली हुई ओसारे में ,
जाने क्या
सन्देश
छिपा है टूटे तारे में ,
स्मृतियाँ
सिरहाने बैठी
लगा रहीं हैं बाम |
पंचामृत से
मन की मूरत
कौन धो रहा है ,
अपनी ही
छाया में कोई
पेड़ सो रहा है |
एक निमन्त्रण
घर आया है
जाने किसके नाम |
नींद नहीं
आँखों में रह -
रह बादल घेर रहे ,
हरे बाँस
सीटियाँ बजाते
वंशी टेर रहे ,
बौछारों
की जद में जंगल ,
गाँव, शहर के पाम |
वंशी टेर रहे ,
बौछारों
की जद में जंगल ,
गाँव, शहर के पाम |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteअद्भुत!!! सादर नमन!!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी।
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर गीत रचा है।
हार्दिक आभार सर सोचा बोझिल समय कुछ रूमान से भर जाय |
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |
Deleteबहुत ही सुन्दर गीत
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |
Deleteसुंदर मनभावन
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनीता जी
Deleteबहुत ही सुन्दर नवगीत ... प्राकृति के अनेक रँगों को उकेरती रचना ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई साहब |
Deleteसिरहाने बैठी लगा रही हैं बाम सुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया अनिल जी
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