गुलमोहर [चित्र -साभार गूगल ] |
एक गीत -कहीं तो होगा हरापन
छटपटाते
प्यास से
व्याकुल हिरन के प्रान |
और नदियों
के किनारे
शब्द भेदी बान |
जल रहे हैं
वन ,नशीली
आँधियों के दिन ,
हवा जूड़े
खोलकर के
ढूँढती है पिन ,
झील की
लहरें अचंचल
डूबता दिनमान |
निर्वसन
हैं खेत ,
धानी दूब वाली मेड़ ,
चटख फूलों
से भरे
गुलमोहरों के पेड़ ,
बन्द आँखे
मगर आहट
सुन रहे हैं कान |
हँस रहीं हैं
मारिचिकाएँ
कर रहीं उपहास,
हर कदम
विभ्रम नहीं
बुझती पथिक की प्यास,
कहीं तो
होगा हरापन
और नखलिस्तान ।
धूल उड़ती
देखती
गोधूलि बेला ,शाम ,
माँ अकेले
जप रही है
कहीं सीताराम !
स्वप्न फिर
आषाढ़
बनकर रोपते हैं धान |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (15-05-2020) को
"ढाई आखर में छिपा, दुनियाभर का सार" (चर्चा अंक-3702) पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।
…...
"मीना भारद्वाज"
आदरणीया मीना जी आपका हृदय से आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 14 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया यशोदा जी आपका हार्दिक आभार
Deleteनये बिम्बों के साथ सुन्दर गीत।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी आपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteस्वप्न फिर
ReplyDeleteआषाढ़
बनकर रोपते हैं धान |...वाह! अद्भुत!!!
आदरणीय आपका हार्दिक आभार
Deleteशब्द-बिंबों में सँजोई गहन संवेदनाओं का निरूपण - सुन्दर और मधुर.
ReplyDeleteसादर अभिवादन |हार्दिक आभार |
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय जोशी जी आपका हृदय से आभार
Deleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया कामिनी जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीया अनुराधा जी आपका हार्दिक आभार
Deleteवाह !बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका अनीता जी
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