Thursday 14 May 2020

एक गीत -कहीं तो होगा हरापन


गुलमोहर [चित्र -साभार गूगल ]

एक गीत -कहीं तो होगा हरापन 

छटपटाते 
प्यास से 
व्याकुल हिरन के प्रान |

और नदियों 
के किनारे 
शब्द भेदी बान |


जल रहे हैं 
वन ,नशीली 
आँधियों के दिन ,
हवा जूड़े
खोलकर के
ढूँढती है पिन ,


झील की 
लहरें अचंचल 
डूबता दिनमान |


निर्वसन 
हैं खेत ,
धानी दूब वाली मेड़ ,
चटख फूलों 
से भरे 
गुलमोहरों के पेड़ ,

बन्द आँखे 
मगर आहट 
सुन रहे हैं कान |


हँस रहीं हैं
मारिचिकाएँ
कर रहीं उपहास,
हर कदम
विभ्रम नहीं
बुझती पथिक की प्यास,

कहीं तो
होगा हरापन
और नखलिस्तान ।



धूल उड़ती 
देखती 
गोधूलि बेला ,शाम ,
माँ अकेले 
जप रही है 
कहीं सीताराम !

स्वप्न फिर 
आषाढ़ 
बनकर रोपते हैं धान |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 

20 comments:

  1. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (15-05-2020) को
    "ढाई आखर में छिपा, दुनियाभर का सार" (चर्चा अंक-3702)
    पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।
    …...
    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीया मीना जी आपका हृदय से आभार

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 14 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीया यशोदा जी आपका हार्दिक आभार

      Delete
  3. नये बिम्बों के साथ सुन्दर गीत।

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    Replies
    1. आदरणीय शास्त्री जी आपका हार्दिक आभार

      Delete
  4. बहुत बढ़िया

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  5. स्वप्न फिर
    आषाढ़
    बनकर रोपते हैं धान |...वाह! अद्भुत!!!

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    Replies
    1. आदरणीय आपका हार्दिक आभार

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  6. शब्द-बिंबों में सँजोई गहन संवेदनाओं का निरूपण - सुन्दर और मधुर.

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    Replies
    1. सादर अभिवादन |हार्दिक आभार |

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  7. Replies
    1. आदरणीय जोशी जी आपका हृदय से आभार

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  8. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन आपको

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया कामिनी जी

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  9. बहुत सुंदर रचना

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    1. आदरणीया अनुराधा जी आपका हार्दिक आभार

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  10. वाह !बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर.

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका अनीता जी

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