एक देशगान -
अब पार्थ जयद्रथ को रण में छलना होगा
अब समय
पूर्व इस
सूरज को ढलना होगा |
हे पार्थ
जयद्रथ को
रण में छलना होगा |
कब थकी
युद्ध की नीति
हिमालय बदलेगा ,
अब हिन्द
महासागर
का पानी उबलेगा ,
दुश्मन के
सीने पर
चढ़कर चलना होगा |
उठ काली
बन विकराल
उठो ब्रह्मोस ,सुदर्शन ,
फिर प्रलय
करो हे महाकाल
कर तांडव नर्तन ,
अब एक एक
हिमखंड
तुम्हें गलना होगा |
अब वीर
जवानों
जवानों
रणभेरी तैयार करो ,
बन शुंग
शिवाजी ,राणा
अरि पर वार करो
दुनिया को
भारत के
पीछे चलना होगा |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
वाह! सुंदर और सामयिक!!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर आह्वान गीत।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |
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