Thursday, 21 May 2020

एक गीत -राम ! तुम्ही थे राम ! अवध की माटी बोल रही

प्रभु श्री राम 


एक गीत --आस्था का 
राम ! तुम्ही थे राम ! अवध की माटी बोल रही 
साक्ष्य सब निकल
निकल प्रणाम बोलने लगे ।
जो प्रमाण माँगते थे
राम बोलने लगे ।

राम ! तुम्ही थे राम ! अवध की माटी बोल रही 

सूर्यवंश के
रघुकुल की 
परिपाटी बोल रही |

राम ! तुम्ही 
थे राम ! अवध 
की माटी बोल रही |

षडयंत्रों ने 
इतिहासों में 
झूठी लिखी कहानी ,
जलसमाधि 
का अब भी 
साक्षी है सरयू का पानी ,

एक एक 
प्रतिमा रहस्य 
का पर्दा खोल रही |


चित्रकूट
से श्रीलंका तक 
वल्कल में वनवास रहा ,
बाल्मीकि 
तुलसी को तेरे 
होने पर विश्वास रहा ,

अश्वमेध के 
घोड़े का सच 
काठी बोल रही |


तुम हो अपराजेय 
अजन्मा 
कौन प्रमाणित करता ,
तेरे सम्मुख 
शीश झुकाता 
महाकाल भी डरता ,

यह नश्वर 
दुनिया सोने 
से माटी तोल रही |

भक्ति- भाव से 
विह्वल होकर 
सबरी के जूठे फल खाए,
जामवंत,सुग्रीव
पवनसुत को
भी हँसकर गले लगाए,

आँखों
देखी किष्किन्धा
की घाटी बोल रही ।


युग युग से 
इस रामकथा को 
भक्ति भाव से कहते ,
पवनपुत्र 
हनुमान यहाँ पर 
योगी बनकर रहते ,

कनक भवन के 
कण कण में 
माँ सीता डोल रही |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
रामजन्मभूमि समतलीकरण में प्राप्त मन्दिर के अवशेष
चित्र -साभार गूगल 


6 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर गीत ... राम नाम तो हर ज़र्रा ज़र्रा बोलता है इस देश माटी और शरीर काका ... जय श्री राम ...

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 22 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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