Thursday 7 May 2020

एक गीत -किसी गीत के सुन्दर मुखड़े जैसी मेरी माँ थी

श्री कृष्ण और माँ यशोदा 


एक गीत -माँ 
किसी गीत के सुन्दर मुखड़े जैसी  मेरी माँ थी 

गंगा ,जमुना ,
पोथी,पत्रा 
और न जाने क्या थी   ?
किसी गीत के 
सुन्दर मुखड़े 
जैसी मेरी  माँ थी   |

रामचरित 
मानस .गीता सी
तुलसी आँगन की ,
एक जादुई 
परीकथा है 
मेरे बचपन की ,
अश्रु बहे 
या दर्द सभी का 
मेरी वही दवा थी ।|

मन्दिर की 
घंटी ,कपूर सी 
दिया ओसारे का ,
मौसम 
पढ़ती रही 
उम्र भर गिरते पारे का  ,
सूखे में 
बारिश ,गर्मी में 
शीतल मंद हवा थी    |

पुरखों का 
तर्पण ,पोतों का 
व्याह रचाती थी   ,
उत्सव ,कथा 
व्याह में मंगल 
गीत सुनाती थी ,
बेटी ,बहू 
पराये  ,अपने  
सबके लिए दुआ थी    |

वंशी ,घूँघरू 
पायल बनकर 
दिनभर बजती थी   ,
घर का थी 
श्रृंगार मगर 
माँ कभी न सजती थी    ,
ओरहन सुनती 
निर्णय देती 
माँ इक राजसभा थी  |

नंगे पाँव 
पहुँचती थी   
माँ खेत -कियारी में ,
पान दान में 
पान फेरती 
धान बखारी में ,
चूल्हा -चक्की  
सानी -पानी 
जाने कहाँ -कहाँ थी  |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

सभी चित्र -साभार गूगल 

सती अनुसूया त्रिदेवों की माँ के रूप में 

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 08 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (08-05-2020) को "जो ले जाये लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध"
    (चर्चा अंक-3695)
    पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार शास्त्री जी

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  4. सुन्दर प्रस्तुति

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  5. हृदयस्पर्शी सृजन ,सादर नमन आपको

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    Replies
    1. कामिनी जी आपका हृदय से आभार

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  6. वाह !लाजवाब सृजन आदरणीय सर
    सादर

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    Replies
    1. अनीता जी आपका हार्दिक आभार

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  7. आदरणीय जयकृष्ण रे तुषार जी, माँ को केंद्र में रखकर उत्तम रचना।
    वंशी ,घूँघरू
    पायल बनकर
    दिनभर बजती थी ,
    घर का थी
    श्रृंगार मगर
    माँ कभी न सजती थी। --ब्रजेन्द्र नाथ

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  8. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन माँ पर...
    घर का थी
    श्रृंगार मगर
    माँ कभी न सजती थी ,
    ओरहन सुनती
    निर्णय देती
    माँ इक राजसभा थी |

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    Replies
    1. सुधा जी आपका हृदय से आभार

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  9. शिव का भी त्रिशुल , जिसके पैरों पर बरसाएं फुल,
    जननी ही है वह, जहां मिट जाए सब शुल ।
    बुहत ही सुंदर रचना है मां को समर्पित करके ।

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  10. बहुत सुंदर सृजन माँ को समर्पित सुंदर सृजन।

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