Tuesday, 19 May 2020

एक गीत -यादों में अब भी है मेहँदी जो छूट गई


चित्र -साभार गूगल -पेंटिंग्स राजा रवि वर्मा 


एक गीत -
यादों में अब भी है मेहँदी जो छूट गई 

सधे हुए 
होंठ मगर 
हाथों से छूट  गई |

कल मुझको 
सुनना 
ये वंशी तो टूट गई |

कल शायद 
झीलों में 
नीलकमल खिल जाये ,
पत्तों में 
छिपी हुई 
मैना भी मिल जाये ,

दिल से जो 
गाती थी 
बुलबुल वो रूठ गई |

डायरी 
तुम्हारी थी 
शब्द चित्र मेरे हैं ,
धरती पर 
अनगिन 
रंग बाँटते सवेरे हैं ,

यादों में 
अब भी है 
मेहँदी जो  छूट गई |

जीवन भर 
भटके हम 
फूलों के गन्ध द्वार ,
आँगन की 
तुलसी से 
कितनों ने किया प्यार ,

अपने मन 
की सुगंध 
दिनचर्या लूट गई |

आना कल 
चंदन वन 
मन का ये ताप हरे ,
कितने दिन 
बीत गये 
फूलों पर पाँव धरे ,

दोपहरी 
ओखल में 
धान हरे कूट गई |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

सभी चित्र -गूगल से साभार 

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 19 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-05-2020) को "फिर होगा मौसम ख़ुशगवार इंतज़ार करना "     (चर्चा अंक-3707)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

    ReplyDelete
  3. आदरणीय शास्त्री जी आपका हार्दिक आभार

    ReplyDelete

  4. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 मई 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया पम्मी जी आपका हार्दिक आभार

      Delete
  5. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  6. वाह!!बेहतरीन सृजन ।

    ReplyDelete
  7. कल मुझको
    सुनना
    ये वंशी तो टूट गई |

    बहुत ही शानदार रचना। सादर

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

कुछ सामयिक दोहे

कुछ सामयिक दोहे  चित्र साभार गूगल  मौसम के बदलाव का कुहरा है सन्देश  सूरज भी जाने लगा जाड़े में परदेश  हिरनी आँखों में रहें रोज सुनहरे ख़्वाब ...