चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -हजार रंग के मौसम
हज़ार रंग के मौसम सफ़र में मिलते हैं
कहाँ ये झील -शिकारे शहर में मिलते हैं
तिलस्म ऐसा मोहब्बत में सिर्फ़ होता है
हमारे अक्स किसी की नज़र में मिलते हैं
यकीन हो न तो कान्हा की बांसुरी सुन लो
तमाम रंग सुरों के अधर में मिलते हैं
संवर के आना ये महफ़िल बड़े अदीबों की
लिबास सादा पहनके वो घर में मिलते हैं
भिंगो के पँख जो संगम में उड़ के गाते रहे
तमाम ऐसे परिंदे लहर में मिलते हैं
अँधेरी रातों में जिद्दी दिए जो जलते रहे
कहाँ चराग अब ऐसे सफ़र में मिलते हैं
यूँ तुमको देख के सब तालियाँ बजाते रहे
कुछ अच्छे शेर ही अच्छी बहर में मिलते हैं
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |