चित्र साभार गूगल |
एक प्रेम गीत
इत्र से भींगे
हुए रुमाल
वाले दिन .
लौट आ
ओ आरती के
थाल वाले दिन.
तुम्हें देखा
याद आए
खुशबुओं के ख़त,
चाँदनी रातें
सुहानी
और सूनी छत,
राग में
डूबे हुए
करताल वाले दिन.
झील में
गौरांग परियों की
कथाओं की,
मंदिरों के
शिखर मंगल -
ध्वनि, ऋचाओं की,
स्वप्न में
कश्मीर, केसर
शाल वाले दिन.
देर तक
एकांत में
भूले कहाँ वो दिन,
दरपनों में
मुस्कुराहट
और जूड़े पिन,
लाल, पीले
बैगनी से
गाल वाले दिन.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
श्रृंगार का अद्भुत अवलोकन ।बहुत ही सुंदर भावों में पगी रचना । मकर संक्रांति पर्व की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteवाह!!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब मनमोहक सृजन ।
हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteअद्भुत ,आपके लिखे गीतों की बात ही निराली है सर।
ReplyDeleteसादर
प्रणाम।
आपका हृदय से आभार श्वेता जी. सादर अभिवादन
Deleteभावों और माधुर्य के धनी हमारे तुषार जी की सुन्दर रचनाएँ साहित्य की अनमोल थाती हैं।इन्हें अपने पाठकों के लिए सहेज कर रखिये।FB भले छोड़ दें,ब्लॉग के बारे में एसा ना सोचें।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें 🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभीवादन रेणु जी. आप सबकी प्रेरणादायी कमेंट्स निःसंदेह लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैँ. सादर
Deleteखूबसूरत नवगीत तुषार जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
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