Sunday, 15 January 2023

एक प्रेम गीत -इत्र से भींगे हुए रुमाल वाले दिन

चित्र साभार गूगल 


एक प्रेम गीत

इत्र से भींगे

हुए रुमाल

वाले दिन .

लौट आ

ओ आरती के

थाल वाले दिन.


तुम्हें देखा

याद आए

खुशबुओं के ख़त,

चाँदनी रातें

सुहानी

और सूनी छत,

राग में

डूबे हुए

करताल वाले दिन.


झील में

गौरांग परियों की

कथाओं की,

मंदिरों के

शिखर मंगल -

ध्वनि, ऋचाओं की,

स्वप्न में

कश्मीर, केसर

शाल वाले दिन.


देर तक

एकांत में

भूले कहाँ वो दिन,

दरपनों में

मुस्कुराहट

और जूड़े पिन,

लाल, पीले

बैगनी से

गाल वाले दिन.


कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


10 comments:

  1. श्रृंगार का अद्भुत अवलोकन ।बहुत ही सुंदर भावों में पगी रचना । मकर संक्रांति पर्व की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

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  2. वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब मनमोहक सृजन ।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

      Delete
  3. अद्भुत ,आपके लिखे गीतों की बात ही निराली है सर।
    सादर
    प्रणाम।

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    1. आपका हृदय से आभार श्वेता जी. सादर अभिवादन

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  4. भावों और माधुर्य के धनी हमारे तुषार जी की सुन्दर रचनाएँ साहित्य की अनमोल थाती हैं।इन्हें अपने पाठकों के लिए सहेज कर रखिये।FB भले छोड़ दें,ब्लॉग के बारे में एसा ना सोचें।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें 🙏

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभीवादन रेणु जी. आप सबकी प्रेरणादायी कमेंट्स निःसंदेह लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैँ. सादर

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  5. खूबसूरत नवगीत तुषार जी

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

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