Sunday, 15 January 2023

कुम्भ गीत -प्रयागराज की,संगम की महिमा



यह प्रयाग है

गीत रचना -जयकृष्ण राय तुषार

गायक स्वर

आकाशवाणी प्रयागराज के कलाकार ऑडिओ

वीडियो निर्माण दिव्यांश द्विवेदी कानपुर

संगीत -श्री लोकेश शुक्ल कार्यक्रम प्रमुख आकाशवाणी

प्रयागराज

यह प्रयाग है यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है 

प्रयाग में [इलाहाबाद में धरती का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण अध्यात्मिक मेला लगता है चाहे वह नियमित माघ मेला हो अर्धकुम्भ या फिर बारह वर्षो बाद लगने वाला महाकुम्भ हो |इस गीत की रचना मैंने २००१ के महाकुम्भ में किया था और इसे जुना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज को भेंट किया था |इसे आकाशवाणी इलाहाबाद द्वारा संगीत वद्ध किया गया है |आप सभी के लिए सादर 

यह प्रयाग है

यहां धर्म की ध्वजा निकलती है

यमुना आकर यहीं

बहन गंगा से मिलती है।


संगम की यह रेत

साधुओं, सिद्ध, फकीरों की

यह प्रयोग की भूमि,

नहीं ये महज लकीरों की

इसके पीछे राजा चलता

रानी चलती है।


महाकुम्भ का योग

यहां वर्षों पर बनता है

गंगा केवल नदी नहीं

यह सृष्टि नियंता है

यमुना जल में, सरस्वती

वाणी में मिलती है।


यहां कुमारिल भट्ट

हर्ष का वर्णन मिलता है

अक्षयवट में धर्म-मोक्ष का

दीपक जलता है

घोर पाप की यहीं

पुण्य में शक्ल बदलती है।


रचे-बसे हनुमान

यहां जन-जन के प्राणों में

नागवासुकी का भी वर्णन

मिले पुराणों में

यहां शंख को स्वर

संतों को ऊर्जा मिलती है।


यहां अलोपी, झूंसी,

भैरव, ललिता माता हैं

मां कल्याणी भी भक्तों की

भाग्य विधाता हैं

मनकामेश्वर मन की

सुप्त कमलिनी खिलती है।


स्वतंत्रता, साहित्य यहीं से

अलख, जगाते हैं

लौकिक प्राणी यही

अलौकिक दर्शन पाते हैं

कल्पवास में यहां

ब्रह्म की छाया मिलती है।


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

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