एक देशगान -आज़ादी के दिन वसंत है
सबसे ऊँचा रहे तिरंगा
अपना नीलगगन में.
वन्देमातरम, राष्ट्र गान
की महिमा रहे वतन में.
आम्र कुंज की मंजरियों से
सारा उपवन महके,
डाल -डाल पर फिर से
सोने वाली चिड़िया चहके,
आज़ादी के दिन वसंत है
खुशबू रहे चमन में.
वतनपरस्ती जन -जन में हो
देशभक्त हो माली,
सरहद पर अपनी सेना की
गाथा गौरवशाली,
फर्ज़ निभाते बारिश, आंधी
ओले, ग्रीष्म तपन में.
शस्त्र -शास्त्र से रहे सुसज्जित
अपनी भारत माता,
गंगा -यमुना और हिमालय
सरयू माँ से नाता,
यह ऋषियों का ज्ञान पिटारा
वैदिक ऋचा पवन में.
दिल्ली का सिंहासन उसका
जो पी-ओ -के लाये,
उसे न देना जो दुश्मन को
घर का भेद बताये,
आज़ादी के दीवानों की
आभा रहे वतन में.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
राष्ट्र की गरिमा बढ़ाती बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति तुषार जी ।आपकी यशस्वी लेखनी से निसृत सरल और सहज उद्गार बहुत मोहक हैं।निश्चित रूप से भारत भूमि की बात ही निराली है।सच में अबकी बार तो गणतंत्र और बसंत का संगम देखते ही बनता है।गणतंत्र दिवस की बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें 🙏
ReplyDeleteश्रद्धेय रेणु जी आज़ादी और वसंत की हार्दिक शुभकामनायें. आपको प्रयाग की गंगा, यमुना और सरस्वती का आशीष मिले आप सपरिवार स्वस्थ और प्रसन्न रहें. सादर
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 जनवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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