सर्वप्रथम मेरा यह गीत नवनीत में आदरणीय श्री विश्वनाथ सचदेव जी ने प्रकाशित किया था |फिर मेरे गीत संग्रह में प्रकाशित हुआ |विगत वर्ष फरवरी अंक में इंदौर से प्रकाशित वीणा में यह प्रकाशित है |
चित्र -साभार गूगल |
अबकी शाखों पर वसंत तुम
एक गीत -
अबकी शाखों पर
वसंत तुम
फूल नहीं रोटियाँ खिलाना |
युगों -युगों से
प्यासे होठों को
अपना मकरंद पिलाना |
धूसर मिट्टी की
महिमा पर
कालजयी कविताएं लिखना ,
राजभवन
जाने से पहले
होरी के आँगन में दिखना ,
सूखी टहनी
पीले पत्तों पर
मत अपना रौब जमाना |
जंगल ,खेतों
और पठारों को
मोहक हरियाली देना ,
बच्चों को
अनकही कहानी
फूल -तितलियों वाली देना ,
चिंगारी -लू
लपटों वाला
मौसम अपने साथ न लाना |
सुनो दिहाड़ी
मज़दूरिन को
फूलों के गुलदस्ते देना ,
बंद गली
फिर राह न रोके
खुली सड़क चौरस्ते देना ,
साँझ ढले
स्लम की देहरी पर
उम्मीदों के दिए जलाना |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -गूगल से साभार |
बहुत बढ़िया तुषार जी!👌👌 बसंत के बहाने जन मानस के हितार्थ कवि मन के स्नेहिल उद्गार बहुत मर्मस्पर्शी हैं।सच है बसंत की गरिमा भी तभी है जब सबको पेट भर खाना और जी भर खुशियाँ मयस्सर हों।हार्दिक आभार और बधाई सुन्दर प्रस्तुति के लिए 🙏
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार आदरणीया रेणु जी
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