गंगा मैया |
एक ग़ज़ल -नए घर में
नए घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो
दिया बनकर वहीं से माँ हमेशा रौशनी देगी
ये सूखी घास अपने लॉन की काटो न तुम भाई
पिता की याद आएगी तो ये फिर से नमी देगी
फ़रक बेटे औ बेटी में है बस महसूस करने का
वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको चाँदनी देगी
ये माँ से भी अधिक उजली इसे मलबा न होने दो
ये गंगा है यही दुनिया को फिर से ज़िन्दगी देगी
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
हार्दिक आभार आपका
Delete'नए घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो' हृदयस्पर्शी ग़ज़ल
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआँखें नम करने वालों बंधों से सजी रचना बहुत भाव-पूर्ण है तुषार जी।विगत समय के साथ दिवंगत माता -पिता की पुण्य स्मृतियों को सहेजना हर किसी के बस की बात नहीं।एक अति संवेदनशील मन ही इन्हें संजो सकता है।🙏
ReplyDeleteबहुत मर्मांतक है 👌👌👌👌🙏
ReplyDeleteनए घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो
दिया बनकर वहीं से माँ हमेशा रौशनी देगी
😞😞