Friday, 7 January 2022

एक ग़ज़ल-मौसम सारे अच्छे थे

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-मौसम सारे अच्छे थे


धूप,हवाएँ, बादल, बिजली,चाँद-सितारे अच्छे थे

जब तक उसके साथ सफ़र था मौसम सारे अच्छे थे


मन्द मन्द मुस्कान किसी की माँझी भी गुलज़ार सा था

फूलों की टोकरियाँ लादे सभी शिकारे अच्छे थे


पक्का घर हैं आँखें सुंदर पर आँखों में नींद नहीं

कच्चे घर में दिखने वाले ख़्वाब हमारे अच्छे थे


बुलबुल के गाने सुनते थे खेत की मेड़ों पर चलकर

गाँव के मंज़र की मत पूछो सभी नज़ारे अच्छे थे


मिलना-जुलना प्यार-मोहब्बत ख़तो-ख़िताबत आज कहाँ

तुम भी सच्चे दोस्त थे पहले हम भी प्यारे अच्छे थे


हिरनी,मछली,जल पाखी का प्यास से गहरा रिश्ता था

लहरों से हर पल टकराते नदी किनारे अच्छे थे


अपनी बोली-बानी अपना कुनबा लेकर चलते थे

बस्ती-बस्ती गीत सुनाते ये बंजारे अच्छे थे

कवि -जयकृष्ण राय तुषार



चित्र साभार गूगल


16 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०८-०१ -२०२२ ) को
    'मौसम सारे अच्छे थे'(चर्चा अंक-४३०३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

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  2. धूप,हवाएँ, बादल, बिजली,चाँद-सितारे अच्छे थे
    जब तक उसके साथ सफ़र था मौसम सारे अच्छे थे
    वाह!!
    बहुत ही शानदार और खूबसूरत गजल
    हर एक पंक्ति बहुत ही लाजवाब है!

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    1. आपका हृदय से आभार आदरणीया मनीषा जी।सादर अभिवादन

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  3. वाह!! एक से बढ़कर एक दृश्यों को उकेरती हुई खूबसूरत सी ग़ज़ल

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम

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  4. बहुत सुंदर रचना....

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    1. डॉ0 शरद जी आपका हृदय से आभार।सादर प्रणाम

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  5. बहुत उम्दा रचना आदरणीय ।

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  6. वाह वाह ! बहुत ही सुन्दर बहुत ही भावमयी बेहद उम्दा ग़ज़ल 'तुषार' जी ! हार्दिक शुभकामनाएं !

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम

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  7. पक्का घर हैं आँखें सुंदर पर आँखों में नींद नहीं

    कच्चे घर में दिखने वाले ख़्वाब हमारे अच्छे थे

    बहुत सुंदर रचना...

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  8. बहुत खूबसूरत रचना

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