चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-मौसम सारे अच्छे थे
धूप,हवाएँ, बादल, बिजली,चाँद-सितारे अच्छे थे
जब तक उसके साथ सफ़र था मौसम सारे अच्छे थे
मन्द मन्द मुस्कान किसी की माँझी भी गुलज़ार सा था
फूलों की टोकरियाँ लादे सभी शिकारे अच्छे थे
पक्का घर हैं आँखें सुंदर पर आँखों में नींद नहीं
कच्चे घर में दिखने वाले ख़्वाब हमारे अच्छे थे
बुलबुल के गाने सुनते थे खेत की मेड़ों पर चलकर
गाँव के मंज़र की मत पूछो सभी नज़ारे अच्छे थे
मिलना-जुलना प्यार-मोहब्बत ख़तो-ख़िताबत आज कहाँ
तुम भी सच्चे दोस्त थे पहले हम भी प्यारे अच्छे थे
हिरनी,मछली,जल पाखी का प्यास से गहरा रिश्ता था
लहरों से हर पल टकराते नदी किनारे अच्छे थे
अपनी बोली-बानी अपना कुनबा लेकर चलते थे
बस्ती-बस्ती गीत सुनाते ये बंजारे अच्छे थे
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०८-०१ -२०२२ ) को
'मौसम सारे अच्छे थे'(चर्चा अंक-४३०३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
Deleteधूप,हवाएँ, बादल, बिजली,चाँद-सितारे अच्छे थे
ReplyDeleteजब तक उसके साथ सफ़र था मौसम सारे अच्छे थे
वाह!!
बहुत ही शानदार और खूबसूरत गजल
हर एक पंक्ति बहुत ही लाजवाब है!
आपका हृदय से आभार आदरणीया मनीषा जी।सादर अभिवादन
Deleteवाह!! एक से बढ़कर एक दृश्यों को उकेरती हुई खूबसूरत सी ग़ज़ल
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
Deleteबहुत सुंदर रचना....
ReplyDeleteडॉ0 शरद जी आपका हृदय से आभार।सादर प्रणाम
Deleteबहुत उम्दा रचना आदरणीय ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteवाह वाह ! बहुत ही सुन्दर बहुत ही भावमयी बेहद उम्दा ग़ज़ल 'तुषार' जी ! हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
Deleteपक्का घर हैं आँखें सुंदर पर आँखों में नींद नहीं
ReplyDeleteकच्चे घर में दिखने वाले ख़्वाब हमारे अच्छे थे
बहुत सुंदर रचना...
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Delete