Sunday, 23 January 2022

एक ग़ज़ल-तुम्हारा चाँद तुम्हारा ही आसमान रहा

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-तुम्हारा चाँद, तुम्हारा ही आसमान रहा


हवा में,धूप में,पानी में फूल खिलते रहे

हज़ार रंग लिए ख़ुशबुएं बदलते रहे


बड़े हुए तो सफ़र में थकान होने लगी

तमाम बच्चे जो घुटनों के बल पे चलते रहे


सुनामी,आँधियाँ, बारिश,हवाएँ हार गईं

बुझे चराग़ नई तीलियों से जलते रहे


जहाँ थे शेर के पंजे वही थी राह असल

नए शिकारी मगर रास्ते बदलते रहे


तुम्हारा चाँद तुम्हारा ही आसमान रहा

मेरी हथेली पे जुगनू दिए सा जलते रहे


कुँए के पानियों को प्यास की ख़बर ही कहाँ

हमारे पाँव भी काई में ही फिसलते रहे


सफ़र में राह बताकर वो हमको लूट गया

उसी के कारवाँ के साथ हम भी चलते रहे

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


8 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-01-2022 ) को 'वरना सारे तर्क और सारे फ़लसफ़े धरे रह जाएँगे' (चर्चा अंक 4320 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. वाह! बहुत ही खूबसूरत गजल.

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  3. हर एक शेर शानदार, माने उतरती सुंदर गजल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  4. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन आदरणीया जिज्ञासा जी

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  5. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम

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