चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-तुम्हारा चाँद, तुम्हारा ही आसमान रहा
हवा में,धूप में,पानी में फूल खिलते रहे
हज़ार रंग लिए ख़ुशबुएं बदलते रहे
बड़े हुए तो सफ़र में थकान होने लगी
तमाम बच्चे जो घुटनों के बल पे चलते रहे
सुनामी,आँधियाँ, बारिश,हवाएँ हार गईं
बुझे चराग़ नई तीलियों से जलते रहे
जहाँ थे शेर के पंजे वही थी राह असल
नए शिकारी मगर रास्ते बदलते रहे
तुम्हारा चाँद तुम्हारा ही आसमान रहा
मेरी हथेली पे जुगनू दिए सा जलते रहे
कुँए के पानियों को प्यास की ख़बर ही कहाँ
हमारे पाँव भी काई में ही फिसलते रहे
सफ़र में राह बताकर वो हमको लूट गया
उसी के कारवाँ के साथ हम भी चलते रहे
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-01-2022 ) को 'वरना सारे तर्क और सारे फ़लसफ़े धरे रह जाएँगे' (चर्चा अंक 4320 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह! बहुत ही खूबसूरत गजल.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteहर एक शेर शानदार, माने उतरती सुंदर गजल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन आदरणीया जिज्ञासा जी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
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