चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-धूप निकल जाए तो अच्छा
संक्रान्ति है मौसम ये बदल जाए तो अच्छा
भींगी हैं छतें धूप निकल जाए तो अच्छा
लो अपनी ही शाखों से बग़ावत में परिंदे
अब इनका ठिकाना ही बदल जाए तो अच्छा
अब ख़त्म हो ये लूट,घरानों की सियासत
कुछ देश का कानून बदल जाए तो अच्छा
जो दिन में अंधेरों को लिए घूम रहा था
उस सूर्य को आकाश निगल जाए तो अच्छा
मैं गीत लिखूँ कैसे कुहासे में उजाले
खिड़की से कोई चाँद निकल जाए तो अच्छा
अपराधमुक्त राज्य में दागी नहीं जीतें
हर बूथ पे जनता ये सम्हल जाए तो अच्छा
उस बार भी नाटक का विजेता था हमारा
इस बार भी जादू वही चल जाय तो अच्छा
अब गंगा को नालों से बचाना है जरूरी
गोमुख पे पड़ी बर्फ़ पिघल जाए तो अच्छा
इस बार भी सरयू के किनारे हो दिवाली
फिर राम का दीपक वही जल जाए तो अच्छा
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
अब ख़त्म हो ये लूट,घरानों की सियासत
ReplyDeleteकुछ देश का कानून बदल जाए तो अच्छा
हर शेर गहन बात कहता है । बेहतरीन ग़ज़ल ।
मकर संक्रांति पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।सादर प्रणाम
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16-1-22) को पुस्तकों का अवसाद " (चर्चा अंक-4311)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteउम्दा भाव!
ReplyDeleteसार्थक अस्आर।
हार्दिक आभार आपका
Deleteअपराधमुक्त राज्य में दागी नहीं जीतें
ReplyDeleteहरबूथ पे जनता ये सम्हल जाए तो अच्छा
समसामयिक स्थितियों के लिए चेतना जगाती रचना। बहुत अच्छा१--ब्रजेंद्रनाथ
हार्दिक आभार आपका
Deleteकाश ऐसा हो जाये तो बहुत अच्छा है । उम्दा अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर सभावनाओं की तलाश करती सुंदर उत्कृष्ट रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह!बेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteसंक्रान्ति है मौसम ये बदल जाए तो अच्छा
भींगी हैं छतें धूप निकल जाए तो अच्छा.
. वाह!
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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