Friday, 14 January 2022

एक ग़ज़ल-सर्द मौसम में खिली धूप गुलाबों की तरह

 

चित्र साभार गूगल


एक ताज़ा ग़ज़ल-

सर्द मौसम में खिली धूप गुलाबों की तरह


सर्द मौसम में खिली धूप गुलाबों की तरह

जाम खुशबू का लिए शाम शराबों की तरह


छोड़कर आसमां महताब चले आओ कभी

तुझको सिरहाने सजा दूँगा किताबों की तरह


जिनकी तस्वीर तसव्वुर में लिए बैठे रहे

वो मुझे भूल गए रात के ख़्वाबों की तरह


ज़िन्दगी तुझको समझना कहाँ आसान रहा

उम्र भर बैठे रहे ले के हिसाबों की तरह


मैंने हर बात ज़माने से कही है दिल की

जिसको दुनिया ये छिपाती है नकाबों की तरह

शायर/कवि जयकृष्ण राय तुषार

(प्रयाग की युवा गायिका स्वाति निरखी की प्रेरणा से)

चित्र साभार गूगल


6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-01-2022) को चर्चा मंच     "मकर संक्रान्ति-विविधताओं में एकता"    (चर्चा अंक 4310)  (चर्चा अंक-4307)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. वाह! बहुत खूब!

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  3. बेहतरीन शब्द चयन, बहुत सुंदर रचना

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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