Saturday 7 December 2019

एक गीत -स्वर्णमृग की लालसा


चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -स्वर्णमृग की लालसा 

स्वर्ण मृग की 
लालसा 
मत पालना हे राम !
दोष 
मढ़ना अब नहीं 
यह जानकी के नाम |

आज भी 
मारीच ,रावण 
घूमते वन -वन ,
पंचवटियों 
में लगाये 
माथ पर चन्दन ,
सभ्यता 
को नष्ट करना 
रहा इनका काम |

लक्ष्मण रेखा 
विफल 
सौमित्र मत जाना ,
शत्रु का 
तो काम है 
हर तरफ़ उलझाना ,
चूक मत करना 
सुबह हो ,
दिवस हो या शाम |

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०८ -१२-२०१९ ) को "मैं वर्तमान की बेटी हूँ "(चर्चा अंक-३५४३) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर सृजन ,सादर नमन आपको

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  5. आज के हालात पर बढ़िया सृजन।

    ReplyDelete
  6. आप सभी का हृदय से आभार

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...