चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -मछली तो चारा खायेगी
कोई भी
तालाब बदल दो
मछली तो चारा खायेगी |
एक उबासी
गंध हवा के
नाम वसीयत कर जायेगी |
गंध हवा के
नाम वसीयत कर जायेगी |
सत्ता का शतरंज /
बिसातों पर उजले -
काले मोहरे हैं ,
आप हमें
अनभिज्ञ न समझें
सबके सब परिचित चेहरे हैं ,
आप सभी
छल -छद्म करेंगे
जिससे की सत्ता आयेगी |
आप सदन
कहते हैं जिसको
वह लाक्षागृह से बदतर है ,
आज प्रजा की
चिंता किसको
राज सभा का दिल पत्थर है ,
राजगुरू को
लाभ मिलेगा जिससे-
वही युक्ति भायेगी |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2016) को "इलज़ाम के पत्थर" (चर्चा अंक-2384) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअतिसुन्दर ...
ReplyDeleteअतिसुन्दर
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