Thursday, 29 September 2016

एक गीत -यह ऋषियों की भूमि -तपोभूमि उत्तराखण्ड की महिमा पर


चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -यह ऋषियों की भूमि
 [तपोभूमि उत्तराखण्ड की महिमा पर ]
[यह गीत बहुत पहले पोस्ट किया था दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ ,सादर ]

यह ऋषियों की भूमि 
यहाँ की कथा निराली है |
गंगा की जलधार यहाँ 
सोने की प्याली है |

हरिद्वार ,कनखल ,बद्री 
केदार यहीं मिलते ,
फूलों की घाटी में मोहक 
फूल यहीं खिलते ,
नीलकंठ पर्वत की 
कैसी छवि सोनाली है |

शिवजी की ससुराल 
यहीं पर मुनि की रेती है ,
दक्ष यज्ञ की कथा 
समय को शिक्षा देती है ,
मंशा देवी यहीं ,यहीं 
माँ शेरावाली है |

हर की पैड़ी जलधारों में 
दीप जलाती है ,
गंगोत्री ,यमुनोत्री 
अपने धाम बुलाती है ,
हेमकुंड है यहीं 
मसूरी और भवाली है |

पर्वत -घाटी झील 
पहाड़ी धुन में गाते हैं ,
देव -यक्ष ,गंधर्व 
इन्हीं की कथा सुनाते हैं ,
कहीं कुमाऊँ और कहीं 
हँसता गढ़वाली है |

लक्ष्मण झूला ,शिवानन्द की 
इसमें छाया है ,
शांति कुञ्ज में शांति 
यहाँ ईश्वर की माया है ,
यहीं कहीं पर कुटिया 
काली कमली वाली है |

उत्सवजीवी लोग यहाँ 
मृदु भाषा बोली है ,
यह धरती का स्वर्ग यहाँ 
हर रंग -रंगोली है ,
देवदार चीड़ों के वन 
कैसी हरियाली है |
चित्र -गूगल से साभार 

2 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-09-2016) के चर्चा मंच "उत्तराखण्ड की महिमा" (चर्चा अंक-2481) पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 30 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete

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