चित्र -गूगल से साभार |
[तपोभूमि उत्तराखण्ड की महिमा पर ]
[यह गीत बहुत पहले पोस्ट किया था दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ ,सादर ]
यह ऋषियों की भूमि
यहाँ की कथा निराली है |
गंगा की जलधार यहाँ
सोने की प्याली है |
हरिद्वार ,कनखल ,बद्री
केदार यहीं मिलते ,
फूलों की घाटी में मोहक
फूल यहीं खिलते ,
नीलकंठ पर्वत की
कैसी छवि सोनाली है |
शिवजी की ससुराल
यहीं पर मुनि की रेती है ,
दक्ष यज्ञ की कथा
समय को शिक्षा देती है ,
मंशा देवी यहीं ,यहीं
माँ शेरावाली है |
हर की पैड़ी जलधारों में
दीप जलाती है ,
गंगोत्री ,यमुनोत्री
अपने धाम बुलाती है ,
हेमकुंड है यहीं
मसूरी और भवाली है |
पर्वत -घाटी झील
पहाड़ी धुन में गाते हैं ,
देव -यक्ष ,गंधर्व
इन्हीं की कथा सुनाते हैं ,
कहीं कुमाऊँ और कहीं
हँसता गढ़वाली है |
लक्ष्मण झूला ,शिवानन्द की
इसमें छाया है ,
शांति कुञ्ज में शांति
यहाँ ईश्वर की माया है ,
यहीं कहीं पर कुटिया
काली कमली वाली है |
उत्सवजीवी लोग यहाँ
मृदु भाषा बोली है ,
यह धरती का स्वर्ग यहाँ
हर रंग -रंगोली है ,
देवदार चीड़ों के वन
कैसी हरियाली है |
चित्र -गूगल से साभार |
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-09-2016) के चर्चा मंच "उत्तराखण्ड की महिमा" (चर्चा अंक-2481) पर भी होगी!
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 30 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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