चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -तब साथी मंगल पर जाओ
धरती की
धरती की
उलझन सुलझाओ |
तब साथी
मंगल पर जाओ |
दमघोंटू
शहरों से ऊबे ,
गाँव अँधेरे में
सब डूबे ,
सारंगी लेकर
जोगी सा
रोशनियों के
गीत सुनाओ |
जाति -धरम
रिश्तों के झगड़े ,
पत्थर रोज
बिवाई रगड़े ,
बाजों के
नाखून काटकर
चिड़ियों को
आकाश दिखाओ |
नीली ,लाल
बत्तियां छोड़ो ,
सिंहासन से
जन को जोड़ो ,
गागर में
सागर भरने में
मत अपना
ईमान गिराओ |
मंगल पर
मत करो अमंगल ,
वहां नहीं
यमुना ,गंगाजल ,
विश्व विजय
करने से पहले
खुद को
तुम इन्सान बनाओ |
बंधु, आप लाजवाब कर देते हो...इस खोज में भारत कि तकनीकी उपलब्धि को दुनिया के समक्ष रखा गया है...व्यवसायिक दृष्टिकोण से...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार को (14-11-2013) ऐसा होता तो ऐसा होता ( चर्चा - 1429 ) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चाचा नेहरू के जन्मदिवस बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जाति -धरम
ReplyDeleteरिश्तों के झगड़े ,
पत्थर रोज
बिवाई रगड़े ,
बाजों के
नाखून काटकर
चिड़ियों को
आकाश दिखाओ |
बहुत सुन्दर सन्देश !!!
क्या बात है तुषार भाई पूरा गीत एक छंद बद्ध बंदिश सा रागात्मक सुन्दर भाव लिए है।
ReplyDeleteजितना भी है ,जैसा भी है ,
सब रस पृथ्वी पर बरसाओ।
भाई वाणभट्ट जी ,आदरणीय शास्त्री जी वंदना जी और अग्रज वीरेन्द्र शर्मा जी आप सभी का बहुत -बहुत आभार |
ReplyDeleteसुन्दर नव गीत ... कुछ बेहतर बातों को जत्लागी है रचना ...
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