Monday, 25 November 2013

एक गीत -बहुत दिनों से इस मौसम को बदल रहे हैं लोग

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -बहुत दिनों से इस मौसम को 
बहुत दिनों से 
इस मौसम को 
बदल रहे हैं लोग |
अलग -अलग 
खेमों में बंटकर 
निकल रहे हैं लोग |

हम दुनिया को 
बदल रहे पर 
खुद को नहीं बदलते ,
अंधे की 
लाठी लेकर के 
चौरस्तों पर चलते ,
बिना आग के 
अदहन जैसे 
उबल रहे हैं लोग |

धूप ,कुहासा ,
ओले ,पत्थर 
सब जैसे के तैसे ,
दुनिया पहुंची  
अन्तरिक्ष में 
हम आदिम युग जैसे ,
नासमझी में 
जुगनू लेकर 
उछल रहे हैं लोग |

गाँव सभा की 
दूध ,मलाई 
परधानों के हिस्से ,
भोले भूखे 
बच्चे सोते 
सुन परियों के किस्से ,
ईर्ष्याओं की 
नम काई पर 
फिसल रहे हैं लोग |

हिंसा ,दंगे 
राहजनी में 
उलझी है आबादी ,
कितनी कसमें 
कितने वादे 
सुधर न पायी खादी ,
नागफ़नी वाली 
सड़कों पर 
टहल रहे हैं लोग |

12 comments:

  1. हम दुनिया को
    बदल रहे पर
    खुद को नहीं बदलते ,
    अंधे की
    लाठी लेकर के
    चौरस्तों पर चलते ,
    बिना आग के
    अदहन जैसे
    उबल रहे हैं लोग

    बढिया

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  2. बहुत बढ़िया...तीखा प्रहार करता कोमल सा गीत....

    सादर
    अनु

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  3. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।मेरे ब्लॉग पर भी आयें ---http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी(गीत

    बेहद खूबसूरत चित्र जुगनू का ...

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  4. वाह!
    बहुत सुन्दर गीत...!

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  5. ख़ूबसूरत गीत..

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  6. सुंदर ...मर्मस्पर्शी गीत

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  7. ये लोग इतने ताकतवर हैं कि दूसरों कि आबो-हवा भी बदल डालते हैं...सुंदर चित्रण...

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  8. उम्दा ..सामयिक और सार्थक ..
    धूप ,कुहासा ,
    ओले ,पत्थर
    सब जैसे के तैसे ,
    दुनिया पहुंची
    अन्तरिक्ष में
    हम आदिम युग जैसे ,
    नासमझी में
    जुगनू लेकर
    उछल रहे हैं लोग |

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  9. आप सभी सुधीजनों का गीत पसंद करने हेतु बहुत -बहुत आभार |

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  10. कल 01/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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