चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -बहुत दिनों से इस मौसम को
बहुत दिनों से
इस मौसम को
बदल रहे हैं लोग |
अलग -अलग
खेमों में बंटकर
निकल रहे हैं लोग |
हम दुनिया को
बदल रहे पर
खुद को नहीं बदलते ,
अंधे की
लाठी लेकर के
चौरस्तों पर चलते ,
बिना आग के
अदहन जैसे
उबल रहे हैं लोग |
धूप ,कुहासा ,
ओले ,पत्थर
सब जैसे के तैसे ,
दुनिया पहुंची
अन्तरिक्ष में
हम आदिम युग जैसे ,
नासमझी में
जुगनू लेकर
उछल रहे हैं लोग |
गाँव सभा की
दूध ,मलाई
परधानों के हिस्से ,
भोले भूखे
बच्चे सोते
सुन परियों के किस्से ,
ईर्ष्याओं की
नम काई पर
फिसल रहे हैं लोग |
हिंसा ,दंगे
राहजनी में
उलझी है आबादी ,
कितनी कसमें
कितने वादे
सुधर न पायी खादी ,
नागफ़नी वाली
सड़कों पर
टहल रहे हैं लोग |
हम दुनिया को
ReplyDeleteबदल रहे पर
खुद को नहीं बदलते ,
अंधे की
लाठी लेकर के
चौरस्तों पर चलते ,
बिना आग के
अदहन जैसे
उबल रहे हैं लोग
बढिया
बहुत बढ़िया...तीखा प्रहार करता कोमल सा गीत....
ReplyDeleteसादर
अनु
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।मेरे ब्लॉग पर भी आयें ---http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी(गीत
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत चित्र जुगनू का ...
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत...!
ख़ूबसूरत गीत..
ReplyDeleteसुंदर ...मर्मस्पर्शी गीत
ReplyDeleteगतिमय गीत
ReplyDeleteये लोग इतने ताकतवर हैं कि दूसरों कि आबो-हवा भी बदल डालते हैं...सुंदर चित्रण...
ReplyDeleteउम्दा ..सामयिक और सार्थक ..
ReplyDeleteधूप ,कुहासा ,
ओले ,पत्थर
सब जैसे के तैसे ,
दुनिया पहुंची
अन्तरिक्ष में
हम आदिम युग जैसे ,
नासमझी में
जुगनू लेकर
उछल रहे हैं लोग |
आप सभी सुधीजनों का गीत पसंद करने हेतु बहुत -बहुत आभार |
ReplyDeleteकल 01/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Every man has become an universe unto himself.
ReplyDelete