Wednesday, 13 November 2013

एक गीत -धरती की उलझन सुलझाओ -तब साथी मंगल पर जाओ

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -तब साथी मंगल पर जाओ 
धरती की 
उलझन सुलझाओ |
तब साथी 
मंगल पर जाओ |

दमघोंटू 
शहरों से ऊबे ,
गाँव अँधेरे में 
सब डूबे ,
सारंगी लेकर 
जोगी सा 
रोशनियों के 
गीत सुनाओ |

जाति -धरम 
रिश्तों के झगड़े ,
पत्थर रोज 
बिवाई रगड़े ,
बाजों के 
नाखून काटकर 
चिड़ियों को 
आकाश दिखाओ |

नीली ,लाल 
बत्तियां छोड़ो ,
सिंहासन से 
जन को जोड़ो ,
गागर में 
सागर भरने में 
मत अपना 
ईमान गिराओ |

मंगल पर 
मत करो अमंगल ,
वहां नहीं 
यमुना ,गंगाजल ,
विश्व विजय 
करने से पहले 
खुद को 
तुम इन्सान बनाओ |

6 comments:

  1. बंधु, आप लाजवाब कर देते हो...इस खोज में भारत कि तकनीकी उपलब्धि को दुनिया के समक्ष रखा गया है...व्यवसायिक दृष्टिकोण से...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार को (14-11-2013) ऐसा होता तो ऐसा होता ( चर्चा - 1429 ) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चाचा नेहरू के जन्मदिवस बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. जाति -धरम
    रिश्तों के झगड़े ,
    पत्थर रोज
    बिवाई रगड़े ,
    बाजों के
    नाखून काटकर
    चिड़ियों को
    आकाश दिखाओ |

    बहुत सुन्दर सन्देश !!!

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  4. क्या बात है तुषार भाई पूरा गीत एक छंद बद्ध बंदिश सा रागात्मक सुन्दर भाव लिए है।

    जितना भी है ,जैसा भी है ,

    सब रस पृथ्वी पर बरसाओ।

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  5. भाई वाणभट्ट जी ,आदरणीय शास्त्री जी वंदना जी और अग्रज वीरेन्द्र शर्मा जी आप सभी का बहुत -बहुत आभार |

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  6. सुन्दर नव गीत ... कुछ बेहतर बातों को जत्लागी है रचना ...

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