एक गीत -एक साहसी चिड़िया उलझी
एक साहसी
चिड़िया उलझी
राजनीति के जाल में |
मगरमच्छ
जबड़े फैलाए
नीलकमल के ताल में |
पथ में
घने बबूलों वाली
उलझी हुई टहनियाँ हैं ,
हम सैलानी
बंधे हाथ हैं
घायल हुई कुहनियाँ हैं ,
रेत भुरभुरी
उलझ गई है
घने रेशमी बाल में |
नया सूर्य
घिर गया बादलों से
धुंधला -धुंधला हर दिन ,
फूलों के
मौसम के सपने
रहे देखते हम पल -छिन ,
इंदर राजा
उलझे केवल
जाँच और पड़ताल में |
सच कहना
ईमान दिखाना
कितना भारी पड़ता है ,
भगत सिंह
सत्ता की आँखों में
हर युग में गड़ता है ,
परजा बहती
रहे बाढ़ में
हाकिम बैठे माँल में |
चुप रहने पर
मौन उभरता
गाओ तो जंगल डरता है ,
देखो अब
मत कहना साथी
एक अकेला क्या करता है ,
जब चाहोगे
राह मिलेगी
आसमान ,पाताल में |
[यह कविता अमर उजाला के साहित्य पेज नई ज़मीन में [18-08-2013]प्रकाशित है |हम सम्पादक श्री यशवंत व्यास जी के आभारी हैं ]
चुप रहने पर
मौन उभरता
गाओ तो जंगल डरता है ,
देखो अब
मत कहना साथी
एक अकेला क्या करता है ,
जब चाहोगे
राह मिलेगी
आसमान ,पाताल में |
[यह कविता अमर उजाला के साहित्य पेज नई ज़मीन में [18-08-2013]प्रकाशित है |हम सम्पादक श्री यशवंत व्यास जी के आभारी हैं ]
उलझेगी, पर उड़ेगी चिड़िया..
ReplyDeleteऐसे सुन्दर गीत का गान, निश्चित दे देता है समाधान!
ReplyDeleteउछालें मारता हुआ नवगीत ...
ReplyDeleteराह जरूर मिलती है ...
अति सुन्दर कृति....
ReplyDeleteसंवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteसंवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा गीत !एक गीतकार की सामायिक घटना पर भावनात्मक अभिव्यत्क्ति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत..बधाई हो।
ReplyDeleteअति सुंदर गीत .....
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
चुप रहने पर
ReplyDeleteमौन उभरता
गाओ तो जंगल डरता है ,
देखो अब
मत कहना साथी
एक अकेला क्या करता है ,
जब चाहोगे
राह मिलेगी
आसमान ,पाताल में |
प्रेरक नवगीत
सच कहना
ReplyDeleteईमान दिखाना
कितना भारी पड़ता है ,
भगत सिंह
सत्ता की आँखों में
हर युग में गड़ता है ,
परजा बहती
रहे बाढ़ में
हाकिम बैठे माँल में |
----------------------
बेहतरीन तेवर के साथ नवगीत जैसा नवगीत
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteकवि कृति हमेशा समकालीन विडंबनाओं को उजागर करती है - एक सशक्त रचना! साधुवाद !
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
वाह बहुत ही श्रेष्ठ अभिव्यक्ति ,
ReplyDelete☆★☆★☆
चुप रहने पर मौन उभरता
गाओ तो जंगल डरता है
देखो अब मत कहना साथी
एक अकेला क्या करता है
जब चाहोगे राह मिलेगी आसमान , पाताल में
एक साहसी चिड़िया उलझी राजनीति के जाल में
मगरमच्छ जबड़े फैलाए नीलकमल के ताल में
वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!
आदरणीय बंधुवर जयकृष्ण राय तुषार जी
आपके नवगीतों का मैं पुराना प्रशंसक हूं...
बहुत श्रेष्ठ लिखते हैं आप !
इस उत्कृष्ट रचना के लिए भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
परजा बहती
ReplyDeleteरहे बाढ़ में
हाकिम बैठे माँल में |
भई वाह ..
बधाई !
Online HP PGT Education Coaching
ReplyDeleteHP PGT Mathematics Coaching
HP PGT Sociology Coaching Online
HP PGT Hindi Coaching
PGT Hindi Coaching