यह गीत मेरी बिलकुल प्रारम्भिक पोस्ट में था उस समय ब्लॉगर मित्रों /पाठकों का ध्यान शायद इस पर नहीं जा सका था ,इसलिए पुन: इसे पोस्ट कर रहा हूँ -
गंगा हमको छोड़ कभी मत इस धरती से जाना
गंगा हमको छोड़ कभी मत
गंगा हमको छोड़ कभी मत इस धरती से जाना
गंगा हमको छोड़ कभी मत
इस धरती से जाना।
तू जैसे कल तक बहती थी
वैसे बहती जाना।
तू है तो ये पर्व अनोखे
ये साधू , सन्यासी,
तुझसे कनखल हरिद्वार है
तुझसे पटना, काशी,
जहॉं कहीं हर हर गंगे हो
पल भर तू रुक जाना |
भक्तों के उपर जब भी
संकट गहराता है ,
सिर पर तेरा हाथ
और आंचल लहराता है,
तेरी लहरों पर है मॉं
हमको भी दीप जलाना |
तू मॉं नदी सदानीरा हो
कभी न सोती हो,
गोमुख से गंगासागर तक
सपने बोती हो,
जहॉं कहीं बंजर धरती हो
मॉं तुम फूल खिलाना।
राजा रंक सभी की नैया
मॉं तू पार लगाती
कंकड़- पत्थर, शंख -सीपियॉं
सबको गले लगाती
तेरे तट पर बैठ अघोरी
सीखे मंत्र जगाना |
छठे छमासे मॉं हम
तेरे तट पर आयेंगे
पान -फूल ,सिन्दूर-
चढ़ाकर दीप जलायेंगे
चढ़ाकर दीप जलायेंगे
मझधारों में ना हम डूबें
समाज देखकर तो यही लगता है कि गंगा बहती है क्यों।
ReplyDeleteगंगा तो नहीं जाना चाहती पर लोग उसे लुप्त कर के ही छोडेंगे ...
ReplyDeleteतुषार जी नमस्कार्। बहुत सुन्दर भक्तिभाव मे माँ गंगा की याचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव के साथ गंगा मैया से सुन्दर प्रार्थना की है आपने
ReplyDelete..सुरसरि सम सबकर हित होई ....याद आयी मानस की अर्धाली !
ReplyDeleteआपके दिल तक गंगा के बारे में हमारी काव्यात्मक पीड़ा पहुंची आप सभी का आभार
ReplyDeleteआपके दिल तक गंगा के बारे में हमारी काव्यात्मक पीड़ा पहुंची आप सभी का आभार
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा नवगीत है। इसके लय और छन्द का प्रवाह गंगा की तरह है, कल-कल, छल-छल!
ReplyDeleteपढ़ते-पढ़ते शुरु में विद्यापति याद आए “बड़ सुख सार पउल तु तीरे’’ और अंत होते-होते एक फ़िल्मी गीत जुबान पर आ गया - ‘गंगा तेरा पानी अमृत झर-झर बहता जाए।’
भागीरथ नीचे तो ला सकते थे...पर भागीरथ के वंशों ने उनकी जो दुर्दशा कर राखी है...भागीरथ को भी तरस आता होगा...गंगा मैया को कहीं वो वापस ना बुला लें...
ReplyDeleteराजा रंक सभी की नैया
ReplyDeleteमॉं तू पार लगाती
कंकड़- पत्थर, शंख -सीपियॉं
सबको गले लगाती
तेरे तट पर बैठ अघोरी
सीखे मंत्र जगाना |
वाह,
सुन्दर गीत के लिए हार्दिक बधाई
तू मॉं नदी सदानीरा हो
ReplyDeleteकभी न सोती हो,
गोमुख से गंगासागर तक
सपने बोती हो,
जहॉं कहीं बंजर धरती हो
मॉं तुम फूल खिलाना।
मां गंगे की आराधना करता भक्तिभावमय सुंदर गीत।
अल्फाज ऐसे की बन गए मोती ,सीरत ऐसी की समाये ,रिचाओं की तरह ........ / मान योग्य काव्य ..शुक्रिया जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत है.
ReplyDeleteगंगा मैया जी जय.