Saturday 1 October 2011

गंगा हमको छोड़ कभी मत इस धरती से जाना


यह गीत मेरी बिलकुल प्रारम्भिक पोस्ट में था उस समय ब्लॉगर मित्रों /पाठकों  का ध्यान शायद इस पर नहीं जा सका था ,इसलिए पुन: इसे पोस्ट कर रहा हूँ -
गंगा हमको छोड़ कभी मत इस धरती से जाना 
गंगा हमको छोड़ कभी मत
इस धरती से जाना।
तू जैसे कल तक बहती थी
वैसे बहती जाना।

तू है तो ये पर्व अनोखे
ये साधू , सन्यासी,
तुझसे कनखल हरिद्वार है
तुझसे पटना, काशी,
जहॉं कहीं हर हर गंगे हो
पल भर तू रुक जाना |

भक्तों के उपर जब भी
संकट गहराता है ,
सिर पर तेरा हाथ
और आंचल लहराता है,
तेरी लहरों पर है मॉं
हमको भी दीप जलाना |

तू मॉं नदी सदानीरा हो
कभी न सोती हो,
गोमुख से गंगासागर तक
सपने बोती हो,
जहॉं कहीं बंजर धरती हो
मॉं तुम फूल खिलाना।

राजा रंक सभी की नैया
मॉं तू पार लगाती
कंकड़- पत्थर, शंख -सीपियॉं
सबको गले लगाती
तेरे तट पर बैठ अघोरी
सीखे मंत्र जगाना    |

छठे छमासे मॉं हम
तेरे तट पर आयेंगे
पान -फूल ,सिन्दूर-
चढ़ाकर दीप जलायेंगे 
मझधारों में ना हम डूबें
मॉं तू पार लगाना।
दोनों ही चित्र गूगल से साभार 

13 comments:

  1. समाज देखकर तो यही लगता है कि गंगा बहती है क्यों।

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  2. गंगा तो नहीं जाना चाहती पर लोग उसे लुप्त कर के ही छोडेंगे ...

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  3. तुषार जी नमस्कार्। बहुत सुन्दर भक्तिभाव मे माँ गंगा की याचना।

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  4. बहुत सुन्दर भाव के साथ गंगा मैया से सुन्दर प्रार्थना की है आपने

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  5. ..सुरसरि सम सबकर हित होई ....याद आयी मानस की अर्धाली !

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  6. आपके दिल तक गंगा के बारे में हमारी काव्यात्मक पीड़ा पहुंची आप सभी का आभार

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  7. आपके दिल तक गंगा के बारे में हमारी काव्यात्मक पीड़ा पहुंची आप सभी का आभार

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  8. बहुत ही प्यारा नवगीत है। इसके लय और छन्द का प्रवाह गंगा की तरह है, कल-कल, छल-छल!

    पढ़ते-पढ़ते शुरु में विद्यापति याद आए “बड़ सुख सार प‍उल तु तीरे’’ और अंत होते-होते एक फ़िल्मी गीत जुबान पर आ गया - ‘गंगा तेरा पानी अमृत झर-झर बहता जाए।’

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  9. भागीरथ नीचे तो ला सकते थे...पर भागीरथ के वंशों ने उनकी जो दुर्दशा कर राखी है...भागीरथ को भी तरस आता होगा...गंगा मैया को कहीं वो वापस ना बुला लें...

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  10. राजा रंक सभी की नैया
    मॉं तू पार लगाती
    कंकड़- पत्थर, शंख -सीपियॉं
    सबको गले लगाती
    तेरे तट पर बैठ अघोरी
    सीखे मंत्र जगाना |

    वाह,
    सुन्दर गीत के लिए हार्दिक बधाई

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  11. तू मॉं नदी सदानीरा हो
    कभी न सोती हो,
    गोमुख से गंगासागर तक
    सपने बोती हो,
    जहॉं कहीं बंजर धरती हो
    मॉं तुम फूल खिलाना।


    मां गंगे की आराधना करता भक्तिभावमय सुंदर गीत।

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  12. अल्फाज ऐसे की बन गए मोती ,सीरत ऐसी की समाये ,रिचाओं की तरह ........ / मान योग्य काव्य ..शुक्रिया जी

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  13. बहुत सुन्दर गीत है.
    गंगा मैया जी जय.

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