चित्र -गूगल से साभार |
घर से दूर
खड़ी दीवाली
सारी रात अमावस काली |
महालक्ष्मी
गणपति बाबा
धनकुबेर हो गए प्रवासी ,
फिर भी
ले पूजा की थाली
बाट जोहती पूरनमासी ,
संवरी बहू
न बिंदिया चमकी
फीकी है होठों की लाली |
मन में बस
फुलझड़ियां छूटीं
महंगाई के डर के मारे ,
घर -आंगन
खपरैल -खेत में
अंधकार ने पांव पसारे ,
घर की मलकिन
उलटे -पलटे
खाली जेबें बटुआ खाली |
हुई पीलिया ग्रस्त
रोशनी
सिकुड़ गयी दीये की बाती ,
उतर न पाया
भूत कर्ज का
उतर न पाई साढ़ेसाती ,
जितने भी
सपने देखे थे
[मेरा यह गीत जनसत्ता वार्षिकांक 2010[ कोलकाता से ]में प्रकाशित है ]
diwali ki shubhkamnayen to chalengi bemol
ReplyDeleteसुंदर दीप मय प्रस्तुति।
ReplyDeleteदीवाली को अभी से गुलजार कर दिया...जनसत्ता में प्रकाशन की भी बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण्।
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति ....दीवाली की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमहालक्ष्मी
ReplyDeleteगणपति बाबा
धनकुबेर हो गए प्रवासी ,
फिर भी
ले पूजा की थाली
बाट जोहती पूरनमासी ,
यथार्थ चित्रण का सुन्दर रूप निखर गया है, आकर्षक प्रभावशाली सृजन राय साहब बहुत -२ बधाईयाँ जी / ,
फिर भी मचेगी धूम धाम से दीवाली ..क्यों जयकृष्ण जी ?
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDelete