चित्र -गूगल से साभार |
हुए हाथों में
दिये दीवाली के |
कापालिक की
कैद सभी
मंतर खुशहाली के |
हल टूटे हैं
खेत रेहन में
भरते मालगुजारी ,
सूदखोर
के हाथ सरौते
हम सब पान -सुपारी ,
पत्तल भी
अदृश्य क्या देखें
सपने थाली के ?
जादू -टोने
तन्त्र -मंत्र सब
करके हार गये ,
और अधिक
पीड़ादायक
निकले बेताल नये ,
इन्द्रप्रस्थ के
रहें प्रजाजन
या वैशाली के |
सरपंचों के
घर -आंगन
रोशनी नियानों की ,
हम
बस्ती में रहते
खस्ताहाल मकानों की ,
सोने में
उछाल कान
सूने घरवाली के |
सब नकली
घी ,हव्य -
आचमन हवनकुंड में ,
बसे पुरोहित
गांव छोड़
दादर ,मुलुण्ड में ,
ढूँढे से भी
फूल नहीं
मिलते शेफाली के |
सूदखोर
ReplyDeleteके हाथ सरौते
हम सब पान -सुपारी .
वाह,एकदम नई approach.
सुन्दर नव गीत ... नए विचार.... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteजादू -टोने
ReplyDeleteतन्त्र -मंत्र सब
करके हार गये ,
और अधिक
पीड़ादायक
निकले बेताल नये ,
इन्द्रप्रस्थ के
रहें प्रजाजन
या वैशाली के |
bahut hi utkrisht
वाह ...बहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteक्या बात है , दिल छूने वाली कविता ,संवेदनाओं का उच्चारण कितनी सहजता से किया ,तारीफ-ए- काबिल है ,उत्क्रिस्ट सृजन की मुक्त कंठ से प्रशंसा राय साहब ./
ReplyDeleteइन्ही विसंगतियों और विडम्बनाओं से भरी है जिन्दगी -अच्छा उकेरा है आपने!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसरपंचों के
ReplyDeleteघर -आंगन
रोशनी नियानों की ,
हम
बस्ती में रहते
खस्ताहाल मकानों की ,
आपकी कविता जीवन के विरल दुख की तस्वीर है, इसमें समाई पीड़ा आम जन की दुख-तकलीफ है। कविता कथ्य और शिल्प दोनों मामले में बेजोड़ है। नवगीत के शिल्प बुनने का आपका कौशल सधा हुआ है।
manoj ji ki baat se bilkul sehmat hoon...!
ReplyDeleteबहुत अच्छी भावपूर्ण रचना..बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
khubsurat geet....
ReplyDeleteहल टूटे हैं
ReplyDeleteखेत रेहन में
भरते मालगुजारी ,
सूदखोर
के हाथ सरौते
हम सब पान -सुपारी ,
पत्तल भी
अदृश्य क्या देखें
सपने थाली के ?
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baDhiyaa
जादू -टोने
ReplyDeleteतन्त्र -मंत्र सब
करके हार गये ,
और अधिक
पीड़ादायक
निकले बेताल नये ,
इन्द्रप्रस्थ के
रहें प्रजाजन
या वैशाली के |
भाव पूर्ण पंग्तियाँ ..सच्चाई उजागर करने वाली