चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
बीत गया दिन मौसम को पढ़ते -एक गीत
खुली किताबें बीत गया दिन
मौसम को पढ़ते |
अनगढ़
चट्टानों में बैठे
तुमको हम गढ़ते |
कभी अजंता
कभी एलोरा
खजुराहो आये ,
लेकिन तेरा
रम्य रूप हम
कहीं नहीं पाये ,
शीशे मिले
खरोचों वाले
कहाँ तुम्हें मढ़ते |
कहीं महकते
फूल कहीं पर
उगे कास ,बढ़नी ,
हिरन न भटके
पीछे मुड़कर
देख रही हिरनी ,
प्यास देखती
रही झील को
पर्वत पर चढ़ते |
हरी घास पर
बैठी चिड़िया
खुजलाती पाँखें ,
सतरंगी
सपनों में उलझी
दो जोड़ी ऑंखें ,
इच्छाओं के
रूमालों पर
फूलों सा कढ़ते |
बंजारन का
बोझ न उतरे
सपने अभी कुंवारे ,
मन के जंगल
हमीं अकेले
किसको करे इशारे ,
हाथ थामकर
संग -संग उसके
हम आगे बढ़ते |
bahut badhiya geet....naye aur taze vimb
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत ..आपको भी दशहरा की ढेरों शुभकामनाएँ
ReplyDeleteKya kahun...Is giit se man gadgad ho gaya...bahut hi sundar giit. Badhai aur Dhashhare ki agrim shubhkaaamnayen
ReplyDeleteNeeraj
तलाश जारी आहे।
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अनंत चाह
ReplyDeleteलाजवाब....
ReplyDeleteइच्छाओं के
ReplyDeleteरूमालों पर
फूलों सा कढ़ते |
कमाल धमाल बेमिसाल
बहुत प्यारा गीत है
सुन्दर सा प्यारा रूमानी गीत ...याद आ गए सोम ....
ReplyDeleteएक पल तेरे ही मीठे संदर्भ का
सारा दिन गीत गीत हो चला
bhaut hi sundar abhivaykti...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteआप को भी दशहरे की शुभकामनाये .
नदी की बलखाती लहरों सा प्रवाहमान सुन्दर गीत |
ReplyDeleteहर बंद सुन्दर सा चित्र उकेर कर रख देता है ......बिम्बों और शब्द चयन का क्या कहना !
भाव और शिल्प ....दोनों से परिपूर्ण..
geet padhna hota hai to aapke blog par aa jata hoon.
मधुर रचना है ... प्रेम शृंगार की ताजगी लिए ...
ReplyDeleteतुषार जी आपका यह गीत बार बार पढने को मन करता है
ReplyDeleteदशहरे की हार्दिक शुभकामनाये
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
aap hamesha se hi kamaal ka likhte hai...aur aaj bhi!
ReplyDeleteबहुत -बहुत सम्मान सुन्दर सृजन को, भवनाये की उभय हो मुखर हो गयीं हैं .... विवसता है की लिख कर भी नहीं लिख पा रहे हैं , शुभकामनायें जी /
ReplyDeleteहरी घास पर
ReplyDeleteबैठी चिड़िया
खुजलाती पाँखें ,
सतरंगी
सपनों में उलझी
दो जोड़ी ऑंखें ,
इच्छाओं के
रूमालों पर
फूलों सा कढ़ते |
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