चित्र -गूगल से साभार |
उड़ते हुए बाजों से कभी डर नहीं लगता
मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता
पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता
नदियों के अगर बांध ये टूटे नहीं होते
ये गांव था यारों ये समन्दर नहीं लगता
हर हर्फ़ यहाँ लिक्खा है रिश्वत की कलम से
इन्साफ करे करे ऐसा ये दफ़्तर नहीं लगता
ये शोर पटाखों के हैं कुछ चीखें दबाये
ऐ दोस्त दीवाली का ये मंजर नहीं लगता
इस पेड़ की शाखों पे अगर फल नहीं होते
इन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता
[मेरी यह गज़ल दैनिक जागरण के साहित्यिक परिशिष्ट पुनर्नवा में प्रकाशित हो चुकी है ]
ये शोर पटाखों के हैं कुछ चीखें दबाये
ReplyDeleteऐ दोस्त दीवाली का ये मंजर नहीं लगता
बहुत सुंदर ....
बहुत खूब ,क्या बात है राय साहब ,....परिंदों को पर नहीं लगता ...... / बेहतरीन गजल , पैगामे - शराफत , बे-मिसाल
ReplyDeleteपौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
ReplyDeleteसाबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता
waah... badhaai ho
मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
ReplyDeleteवो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता
मगर हम है कि मकानों को मकबरों में और मकबरों को सजाकर घर का लुत्फ़ ले रहे हैं।
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
ReplyDeleteवो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता
बहुत खूब कहा है आपने ।
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteपौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता
इस पेड़ की शाखों पे अगर फल नहीं होते
ReplyDeleteइन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता
वाह!
पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
ReplyDeleteसाबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता
Bemisaal rachana!
बहुत प्रभावी रचना।
ReplyDeleteएक अद्भुत साहित्यिक बोध समेटे हुए है यह कविता
ReplyDeletegajal is good.
ReplyDeleteइन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता ....
ReplyDeleteहर शेर बेशकीमती...
बेहतरीन ग़ज़ल...
सादर बधाई...
मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
ReplyDeleteवो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता
लिखने को तो लिखते हैं बहुत यूँ ही ग़ज़ल
'तुषार' ने लिक्खी है, ऐसा नहीं लगता...
बेहद ख़ूबसूरत...
इस पेड़ की शाखों पे अगर फल नहीं होते
ReplyDeleteइन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता ...
javab nahi hai aapke is sher ka ...bahut khubsurat gazal likhi hai aapne hardik badhai...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबढ़िया लगी यह गज़ल। एक शेर तो एकदम अनूठा है। नयां लगा यह अंदाज...
ReplyDeleteमुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता
...बहुत बधाई।
कल 02/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।
ReplyDeleteधन्यवाद!
पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
ReplyDeleteसाबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता ...बहुत खुबसूरत बेमिशाल अभिव्यक्ति।...
यह गज़ल आप सभी को अच्छी लगी |आप सभी का दिल से आभार और आप सभी को प्रणाम
ReplyDeleteयह गज़ल आप सभी को अच्छी लगी |आप सभी का दिल से आभार और आप सभी को प्रणाम
ReplyDeleteसुंदर गजल,लगता है दिल से लिखा है बढ़िया पोस्ट ..बधाई ...
ReplyDeleteपौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
ReplyDeleteसाबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता
बहुत खूब सर!
सादर
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‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है
मेरी नई पोस्ट देखे...
ReplyDeleteमुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
ReplyDeleteवो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता
वाह..वाह...वाह....इस लाजवाब ग़ज़ल के हर शेर के लिए ढेरों दाद कबूल करें...बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...
नीरज