Monday, 31 October 2011

एक गज़ल -इन नन्हें परिन्दों को

चित्र -गूगल से साभार 
इन नन्हें परिन्दों को अगर पर नहीं लगता 
उड़ते हुए बाजों से कभी डर नहीं लगता 

मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा 
वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता 

पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं 
साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता 

नदियों के अगर बांध ये टूटे नहीं होते 
ये गांव था यारों ये समन्दर नहीं लगता 

हर हर्फ़ यहाँ लिक्खा है रिश्वत की कलम से 
इन्साफ करे करे ऐसा ये दफ़्तर नहीं लगता 

ये शोर पटाखों के हैं कुछ चीखें दबाये 
ऐ दोस्त दीवाली का ये मंजर नहीं लगता 

इस पेड़ की शाखों पे अगर फल नहीं होते 
इन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता 

[मेरी यह गज़ल दैनिक जागरण के साहित्यिक परिशिष्ट पुनर्नवा में प्रकाशित हो चुकी है ]

25 comments:

  1. ये शोर पटाखों के हैं कुछ चीखें दबाये
    ऐ दोस्त दीवाली का ये मंजर नहीं लगता

    बहुत सुंदर ....

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  2. बहुत खूब ,क्या बात है राय साहब ,....परिंदों को पर नहीं लगता ...... / बेहतरीन गजल , पैगामे - शराफत , बे-मिसाल

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  3. पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
    साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता
    waah... badhaai ho

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  4. मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
    वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता

    मगर हम है कि मकानों को मकबरों में और मकबरों को सजाकर घर का लुत्फ़ ले रहे हैं।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति।

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
    तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
    अवगत कराइयेगा ।

    http://tetalaa.blogspot.com/

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  6. मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
    वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता
    बहुत खूब कहा है आपने ।

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  7. बहुत खूबसूरत गज़ल ..

    पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
    साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता

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  8. इस पेड़ की शाखों पे अगर फल नहीं होते
    इन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता
    वाह!

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  9. पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
    साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता
    Bemisaal rachana!

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  10. बहुत प्रभावी रचना।

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  11. एक अद्भुत साहित्यिक बोध समेटे हुए है यह कविता

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  12. इन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता ....

    हर शेर बेशकीमती...
    बेहतरीन ग़ज़ल...
    सादर बधाई...

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  13. मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
    वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता

    लिखने को तो लिखते हैं बहुत यूँ ही ग़ज़ल
    'तुषार' ने लिक्खी है, ऐसा नहीं लगता...

    बेहद ख़ूबसूरत...

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  14. इस पेड़ की शाखों पे अगर फल नहीं होते
    इन गाते परिन्दों को ये पत्थर नहीं लगता ...
    javab nahi hai aapke is sher ka ...bahut khubsurat gazal likhi hai aapne hardik badhai...

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  15. बढ़िया लगी यह गज़ल। एक शेर तो एकदम अनूठा है। नयां लगा यह अंदाज...

    मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
    वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता

    ...बहुत बधाई।

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  16. कल 02/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।

    धन्यवाद!

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  17. पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
    साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता ...बहुत खुबसूरत बेमिशाल अभिव्यक्ति।...

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  18. यह गज़ल आप सभी को अच्छी लगी |आप सभी का दिल से आभार और आप सभी को प्रणाम

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  19. यह गज़ल आप सभी को अच्छी लगी |आप सभी का दिल से आभार और आप सभी को प्रणाम

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  20. सुंदर गजल,लगता है दिल से लिखा है बढ़िया पोस्ट ..बधाई ...

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  21. पौधे न सही फूल के ,कांटे तो उगे हैं
    साबित तो हुआ बाग ये बंजर नहीं लगता

    बहुत खूब सर!

    सादर
    -----
    ‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है

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  22. मुद्दत से दीवारों ने जहाँ ख्वाब न देखा
    वो ताजमहल होगा मगर घर नहीं लगता

    वाह..वाह...वाह....इस लाजवाब ग़ज़ल के हर शेर के लिए ढेरों दाद कबूल करें...बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...

    नीरज

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