चित्र -साभार गूगल |
ग़ज़ल -1
मौसम के साथ धूप के नख़रे भी कम न थे 1
मौसम के साथ धूप के नख़रे भी कम न थे
यादें तुम्हारी साथ थीं तन्हा भी हम न थे
बजरे पे पनियों का नज़ारा हसीन था
महफ़िल में उसके साथ में होकर भी हम न थे
राजा हो ,कोई रंक या शायर ,अदीब हो
जीवन में किसके साथ खुशी और ग़म न थे
बदला मेरा स्वभाव जमाने को देखकर
बचपन में दांव -पेंच कभी पेचोखम न थे
बादल थे आसमान में दरिया भी थे समीप
प्यासी जमीं थी पेड़ के पत्ते भी नम न थे
ग़ज़ल -2
रंज छोड़ो गर पुराना कोई मंजर याद हो
रंज छोड़ो गर पुराना कोई मंजर याद हो
बैठना मुँह फेरकर पर मौन से संवाद हो
जिंदगी भी पेड़ सी है देखती मौसम कई
फूल,खुशबू चाहिए तो शौक- पानी-खाद हो
अपनी किस्मत, अपनी मेहनत से मिले जो,खुश रहें
मुंबई में क्या जरूरी हर कोई नौशाद हो
मिल गया दीवान ग़ज़लों का मगर मशरूफ़ हूँ
फोन पर कुछ शेर पढ़ देना जो तुमको याद हो
शायरा का हुस्न देखे तालियाँ बजती रहीं
बज्म में किसने कहा हर शेर पर ही दाद हो
कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज शनिवार 23 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (24-01-2021) को "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर" (चर्चा अंक-3949) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार आपका सर जी
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