Wednesday, 12 August 2015

एक देशगान -यह मिट्टी हिंदुस्तान की

चित्र -गूगल से साभार 
स्वतन्त्रता दिवस के पावन राष्ट्रीय पर्व पर  बधाई और शुभकामनाओं के साथ 


एक गीत -यह मिट्टी हिन्दुस्तान की 

इस मिट्टी का क्या कहना 
यह मिट्टी हिन्दुस्तान की |
यह गुरुनानक ,तुलसी की है 
यह दादू ,रसखान की |

इसमें पर्वतराज हिमालय ,
कल-कल झरने बहते हैं ,
इसमें सूफ़ी ,दरवेशों के 
कितने कुनबे रहते हैं ,
इसकी सुबहें और संध्यायें 
हैं गीता ,कुरआन की |

यहाँ कमल के फूल और 
केसर खुशबू फैलाते हैं ,
हम आज़ाद देश के पंछी 
नीलगगन में गाते हैं ,
इसके होठों की लाली है 
जैसे मघई पान की |

सत्य अहिंसा ,दया ,धर्म की 
आभा इसमें रहती है ,
यही देश है जिसमें 
गंगा के संग जमुना बहती है ,
अपने संग हम रक्षा करते 
औरों के सम्मान की |

गाँधी के दर्शन से अब भी 
इसका चौड़ा सीना है ,
अशफाकउल्ला और भगत सिंह 
का यह खून -पसीना है ,
युगों -युगों से यह मिट्टी है 
त्याग और बलिदान की |

[यह मेरा पुराना गीत है नया न लिख पाने के कारण दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ आप सब अपनी बहुमूल्य टिप्पणियाँ पहले ही दे चुके हैं |आभार सहित ]
चित्र -गूगल से साभार 

Friday, 20 March 2015

एक गीत -मौसम को प्यार हुआ

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -मौसम को प्यार हुआ 
खेतों में 
धान जला 
गेहूं लाचार हुआ |
चकाचौंध -
शहरों से 
मौसम को प्यार हुआ |

हम करैल
मिटटी में 
कर्ज़ -सूद बोते हैं ,
ऋतुओं की 
इच्छा पर 
हँसते हैं रोते हैं ,
फागुन में 
ओले थे 
सावन अंगार हुआ |

कौओं की 
चोंच धंसी 
बैलों की खाल में ,
चुटकी भर 
खैनी हम 
दाब रहे गाल में ,
गाँव नहीं 
गाँव रहा 
अब तो बाज़ार हुआ |

सोने की 
चिड़िया कब 
पेड़ों पर गाती है ,
राजसभा 
परजा को 
सच कहाँ बताती है ,
मक़सद को 
भूल गया 
जो भी सरदार हुआ |
चित्र -गूगल से साभार 


Thursday, 26 February 2015

एक गीत -होली

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 

[यह पुराना गीत है आप सब अपनी बहुमूल्य टिप्पणी इस गीत पर दे चुके हैं ]


आम  कुतरते हुए सुए से 

आम कुतरते हुए सुए से 
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना 
भुजिया बीकानेर की |

गोकुल ,वृन्दावन की हो 
या होली हो बरसाने की ,
परदेशी की वही पुरानी 
आदत है तरसाने की ,
उसकी आंखों को भाती है 
कठपुतली आमेर की |

इस होली में हरे पेड़ की 
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले ,पकड़कर 
हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू 
गुड़हल और कनेर की |

चौपालों पर ढोल मजीरे 
सुर गूंजे करताल के ,
रूमालों से छूट न पायें 
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर बांचेंगे 
कविता शमशेर की |
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार
[मेरा दूसरा गीत अमर उजाला के २० मार्च २०११ के साप्ताहिक परिशिष्ट जिंदगी लाइव में प्रकाशित हो चुका है |इस गीत को प्रकाशित करने के लिए जाने माने कवि /उपन्यासकार एवं सम्पादक साहित्य अरुण आदित्य जी  का विशेष आभार]
[दूसरा  गीत   नरेंद्र व्यास जी के आग्रह पर  लिखना पड़ा, इसलिए यह गीत उन्हीं को समर्पित  कर रहा हूँ ]

Saturday, 14 February 2015

एक प्रेम गीत --फूलों में रंग रहेंगे


चित्र -पेंटिंग -गूगल से साभार 



एक प्रेमगीत 
फूलों में रंग रहेंगे ....

जब तक 
तुम साथ रहोगी 
फूलों में रंग रहेंगे ,
जीवन का 
गीत लिए हम 
हर मौसम संग रहेंगे |

जब तक 
तुम साथ रहोगी 
मन्दिर में दीप जलेंगे ,
उड़ने को 
नीलगगन में 
सपनों को पंख मिलेंगे ,
तू नदिया 
हम मांझी नाव के 
धारा के संग बहेंगे |

जब तक 
तुम साथ रहोगी 
एक हंसी साथ रहेगी ,
मुश्किल 
यात्राओं में भी 
खुशबू ले हवा बहेगी ,
जब तक 
यह मौन रहेगा 
अनकहे प्रसंग रहेंगे |


तुमसे ही 
शब्द चुराकर 
लिखते हैं प्रेमगीत हम ,
भावों में 
डूब गया मन 
उपमाएं हैं कितनी कम ,
तोड़ेंगे 
वक्त की कसम 
तुमसे कुछ आज कहेंगे |
चित्र -गूगल से साभार 

Monday, 5 January 2015

एक गीत आस्था का -यह प्रयाग है


यह प्रयाग है यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है 
यह प्रयाग है
यहां धर्म की ध्वजा निकलती है
यमुना आकर यहीं
बहन गंगा से मिलती है।

संगम की यह रेत
साधुओं, सिद्ध, फकीरों की
यह प्रयोग की भूमि,
नहीं ये महज लकीरों की
इसके पीछे राजा चलता
रानी चलती है।

महाकुम्भ का योग
यहां वर्षों पर बनता है
गंगा केवल नदी नहीं
यह सृष्टि नियंता है
यमुना जल में, सरस्वती
वाणी में मिलती है।

यहां कुमारिल भट्ट
हर्ष का वर्णन मिलता है
अक्षयवट में धर्म-मोक्ष का
दीपक जलता है
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।

रचे-बसे हनुमान
यहां जन-जन के प्राणों में
नागवासुकी का भी वर्णन
मिले पुराणों में
यहां शंख को स्वर
संतों को ऊर्जा मिलती है।

यहां अलोपी, झूंसी,
भैरव, ललिता माता हैं
मां कल्याणी भी भक्तों की
भाग्य विधाता हैं
मनकामेश्वर मन की
सुप्त कमलिनी खिलती है।

स्वतंत्रता, साहित्य यहीं से
अलख, जगाते हैं
लौकिक प्राणी यही
अलौकिक दर्शन पाते हैं
कल्पवास में यहां
ब्रह्म की छाया मिलती है |
[यह गीत मैंने २००१ के महाकुम्भ में लिखा था दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ ]

Thursday, 18 December 2014

एक देशगान -कितना सुन्दर ,कितना प्यारा, देश हमारा है

लाल किला -चित्र गूगल से साभार 



एक देशगान -कितना सुन्दर, कितना प्यारा 
देश हमारा है 

कितना सुंदर 
कितना प्यारा 
देश हमारा है |
नीलगगन के 
सब तारों में 
यह ध्रुवतारा है |

पर्वत -घाटी 
तीर्थ, सलोना 
इसे बनाते हैं ,
सारे पावन 
ग्रन्थ यहाँ की 
महिमा गाते हैं ,
लोकरंग में 
गीत सुनाता 
यह बंजारा है |

सत्य -अहिंसा 
दया -धर्म का 
इससे नाता है ,
युद्ध थोपने वालों 
को यह 
सबक सिखाता है ,
इसका प्रहरी 
पर्वत है 
सागर की धारा है |

हर मौसम के 
रंग यहाँ 
फूलों की घाटी है ,
अनगिन 
वीर शहीदों की 
यह पावन माटी है ,
सत्यमेव जयते 
इसका 
सदियों से नारा है |
चित्र -गूगल से साभार 

Tuesday, 21 October 2014

एक नवगीत -बासीपन हवाओं में

चित्र -गूगल से साभार 



एक नवगीत -बासीपन हवाओं में 
फूल तो 
हैं किन्तु 
बासीपन हवाओं में |
लिख रहे 
मौसम 
सुहाना हम कथाओं में |

यंत्रवत 
होने लगे 
संवेदना के स्वर ,
मौन सा 
रहने लगा है 
कहकहों का घर ,
क़ैद हैं 
हम आधुनिकता के 
प्रभावों में |

जहाँ जलसा है 
वहीं पर 
त्रासदी है ,
रोज 
आदमखोर 
होती यह सदी है ,
लिख रहा 
गोधूलि बेला 
दिन ,दिशाओं में |

रोशनी है 
मगर गुम 
होते दिया -बाती ,
अब मुंडेरों पर 
सुबह 
चिड़िया नहीं गाती ,
अब नहीं 
सम्वाद 
है सखियों -सखाओं में |

Sunday, 24 August 2014

एक नवगीत -हरे वन की चाह में

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -

हरे वन की चाह में 

हरे वन की 
चाह में फिर 
पंख चिड़ियों के जले हैं |
यहाँ ऋतुएं 
हैं तिलस्मी 
और मौसम दोगले हैं |

प्यास होंठों पर 
सजाए हम 
नदी से लौट आए ,
कौन है ये 
आसमां में 
धूम्र के बादल सजाए ,
हो गया 
जनतंत्र बहरा 
या कि हम सब तोतले हैं |

हम पठारों पर 
बसे हैं 
फूल इन पर क्या खिलेंगे ,
हर कदम पर 
हमें कुछ 
कांटे बबूलों के मिलेंगे ,
हम सुरंगों 
में घिरे हैं 
भले मीलों तक चले हैं |

हम हँसे तो 
इस व्यवस्था ने 
हमारे होंठ काटे ,
रो दिए तो 
धर्मगुरुओं ने 
हमारे रुदन बांटे ,
हमें रहने दो 
महज इन्सान 
हम इसमें भले हैं |
चित्र -गूगल से साभार 

Tuesday, 22 July 2014

एक गीत -औरतें होंगी तभी तो यह सदी होगी

चित्र /पेंटिंग्स -गूगल से साभार 
मित्रों इस गीत में मुझे कुछ संशोधन करना पड़ा इसे और अच्छा बनाने की एक कोशिश है |क्षमा सहित 
एक गीत -
औरतें होंगी तभी तो यह सदी होगी 

औरतें होंगी 
तभी तो 
यह सदी होगी |
हिमशिखर 
होंगे तभी 
उजली नदी होगी |

ये गगन के 
मेघ जितना 
जल भरे होंगे ,
इस धरा के 
आवरण 
उतने हरे होंगे ,
जब कभी 
मरुथल हँसेगा 
त्रासदी होगी |

मौन सुर 
केवल रुदन के 
गीत गाते हैं ,
अब सड़क को 
हादसों के 
दृश्य भाते हैं ,
निर्वसन 
होती सदी 
यह द्रौपदी होगी |

कलमुंहे दिन 
बेटियों के लिए 
कब मंगल हुए ,
सभ्यता 
किस अर्थ की 
यदि ये शहर जंगल हुए ,
फूल की 
हर शाख 
काँटों से लदी होगी |

किसी 
सीता को 
अगर आंसू बहेगा ,
हमें भी 
इतिहास यह 
रावण कहेगा ,
घन तिमिर 
के शून्य में 
क्या कौमुदी होगी |


Sunday, 20 July 2014

एक गीत -इस रक्तरंजित सुब्ह का मौसम बदलना

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -
इस रक्तरंजित सुबह का मौसम बदलना 

इस रक्त रंजित 
सुब्ह का 
मौसम बदलना |
या गगन में 
सूर्य कल 
फिर मत निकलना |

द्रौपदी 
हर शाख पर 
लटकी हुई है ,
दृष्टि फिर 
धृतराष्ट्र की 
भटकी हुई है ,
भीष्म का भी 
रुक गया 
लोहू उबलना |

यह रुदन की 
ऋतु  नहीं ,
यह गुनगुनाने की ,
तुम्हें 
आदत है 
खुशी का घर जलाने की ,
शाम को 
शाम -ए -अवध 
अब मत निकलना |

एक गीत -गा रहा होगा पहाड़ों में कोई जगजीत

  चित्र साभार गूगल एक गीत -मोरपँखी गीत  इस मारुस्थल में  चलो ढूँढ़े  नदी को मीत. डायरी में  लिखेंगे  कुछ मोरपँखी गीत. रेत में  पदचिन्ह होंगे ...