चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
[यह पुराना गीत है आप सब अपनी बहुमूल्य टिप्पणी इस गीत पर दे चुके हैं ]
आम कुतरते हुए सुए से
आम कुतरते हुए सुए से
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना
भुजिया बीकानेर की |
गोकुल ,वृन्दावन की हो
या होली हो बरसाने की ,
परदेशी की वही पुरानी
आदत है तरसाने की ,
उसकी आंखों को भाती है
कठपुतली आमेर की |
इस होली में हरे पेड़ की
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले ,पकड़कर
हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू
गुड़हल और कनेर की |
चौपालों पर ढोल मजीरे
सुर गूंजे करताल के ,
रूमालों से छूट न पायें
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर बांचेंगे
कविता शमशेर की |
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
[दूसरा गीत नरेंद्र व्यास जी के आग्रह पर लिखना पड़ा, इसलिए यह गीत उन्हीं को समर्पित कर रहा हूँ ]
sundar geet hetu hardik badhai
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत
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