चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -मौसम को प्यार हुआ
खेतों में
धान जला
गेहूं लाचार हुआ |
चकाचौंध -
शहरों से
मौसम को प्यार हुआ |
हम करैल
मिटटी में
कर्ज़ -सूद बोते हैं ,
ऋतुओं की
इच्छा पर
हँसते हैं रोते हैं ,
फागुन में
ओले थे
सावन अंगार हुआ |
कौओं की
चोंच धंसी
बैलों की खाल में ,
चुटकी भर
खैनी हम
दाब रहे गाल में ,
गाँव नहीं
गाँव रहा
अब तो बाज़ार हुआ |
गाँव रहा
अब तो बाज़ार हुआ |
सोने की
चिड़िया कब
पेड़ों पर गाती है ,
राजसभा
परजा को
सच कहाँ बताती है ,
मक़सद को
भूल गया
वाह.. बहुत ही सुन्दर गीत...
ReplyDeleteअच्छे दिनों के इंतजार में... :-)
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-03-2015) को "नूतनसम्वत्सर आया है" (चर्चा - 1924) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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भारतीय नववर्ष की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर रचना ... नवसंवत्सर की शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमौसम का कहर और उसका असर...बहुत बढ़िया चित्रण किया है आपने। बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर नव गीत कुछ सटीक बातें सहज ही कह दीं ...
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