चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -यह मिट्टी हिन्दुस्तान की
इस मिट्टी का क्या कहना
इस मिट्टी का क्या कहना
यह मिट्टी हिन्दुस्तान की |
यह गुरुनानक ,तुलसी की है
यह दादू ,रसखान की |
इसमें पर्वतराज हिमालय ,
कल-कल झरने बहते हैं ,
इसमें सूफ़ी ,दरवेशों के
कितने कुनबे रहते हैं ,
इसकी सुबहें और संध्यायें
हैं गीता ,कुरआन की |
यहाँ कमल के फूल और
केसर खुशबू फैलाते हैं ,
हम आज़ाद देश के पंछी
नीलगगन में गाते हैं ,
इसके होठों की लाली है
जैसे मघई पान की |
सत्य अहिंसा ,दया ,धर्म की
आभा इसमें रहती है ,
यही देश है जिसमें
गंगा के संग जमुना बहती है ,
अपने संग हम रक्षा करते
औरों के सम्मान की |
गाँधी के दर्शन से अब भी
इसका चौड़ा सीना है ,
अशफाकउल्ला और भगत सिंह
का यह खून -पसीना है ,
युगों -युगों से यह मिट्टी है
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन : द माउंटेन मैन - दशरथ मांझी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteOld is gold
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteआप सभी हृदय से आभार
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