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चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ
ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ
ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे
दिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ
कमा लेता हूँ इतना मिल सके दो जून की रोटी
मैं बटुआ देखकर बाज़ार का सामान लिखता हूँ
कभी फूलों की घाटी से कभी दरिया से मिलता हूँ
कभी महफ़िल में बंज़ारों की, रेगिस्तान लिखता हूँ
कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |