Saturday, 2 March 2024

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता


सफ़र में धुंध,ये बादल, कभी शजर आता

इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता


बताता हाल मैं दरियाओं के परिंदो का

मुझे भी नाव चलाने का कुछ हुनर आता


शहर में खिड़कियाँ, पर्दे हैं आसमान कहाँ

हमारे गाँव में सूरज सुबह ही घर आता


तमाम रेत है, दरिया न पेड़ का साया

हमारी राह में कैसे कोई बशर आता


मकान रिश्ते भी पुरखों के बाँट डाले गए

खिलौना देख के बच्चा नहीं इधर आता


कवि /शायर

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


सभी चित्र साभार गूगल

2 comments:

  1. मुक़म्मल ग़ज़ल

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन

      Delete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

प्रयाग पथ पत्रिका का मोहन राकेश पर केंद्रित विशेषांक

  प्रयागपथ प्रयागपथ का नया अंक मोहन राकेश पर एक अनुपम विशेषांक है. इलाहाबाद विश्व विद्यालय जगदीश गुप्त, कृष्णा सोबती,अमरकांत डॉ रघुवंश, श्री...